सऊदी अरब का वो शहर जहां मुसलमानों को जाना मना है

 
सउरी अरब का वो शहर जहां मुसलमानों को जाना मना है,The city in Saudi Arabia where Muslims are forbidden to go
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सफर उल मुजफ्फर 1445 हिजरी
सितंबर, 2023
अकवाले जरीं
औरतों का मर्दों की मुशाबहत इख़्तियार करना, मर्दाना लिबास पहनना गुनाह व हराम है। उम्मुल मोमिनीन, हजरत आइशा सिद्दीका (रजियल्लाहु अन्हा) से किसी ने अर्ज किया, एक औरत मर्दों की तरह जूते पहनती है। उम्मुल मोमिनीन (रजियल्लाहु अन्हा) ने फरमाया, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने मर्दानी औरतों पर लानत फरमाई है। 
- अबू दाऊद


  • दुनिया के सात अजीबों में शामिल है ये शहर ‘अल ऊला’ 
  • दो हजार साल पुराने इस शहर के मुताल्लिक मजीद खोज का सिलसिला जारी है
  • सहरा की मिट्टी से बनें मकानों के खंडहर अब अजीब शक्ल में नजर आते हैं
  • अल ऊला’ के अलावा यूनेस्को वर्ल्ड हैरीटेज में 'अल-हिजर' भी शामिल है, जहां सुर्ख रेत के पत्थरों में तराशे गए बड़े-बड़े मकबरे मौजूद हैं। 
  • सफर और सयाहत (पर्यटन) में महारत रखने वाले अमरीकी मैग्जीन ने साल 2023 के लिए दुनिया के सात अजीबों में सऊदी अरब के शहर ‘अल ऊला’ को भी शामिल कर लिया है। 

✒ बख्तावर अदब

जमीन पर सबसे ज्यादा हैरत अंगेज मुकामात (आश्चर्यजनक स्थानों) की सालाना दर्जाबंदी की सीरीज में इस साल ‘अल ऊला’ को भी शामिल कर लिया गया है। अमरीकी मैगजीन ने वजाहत (स्पष्ट) किया है कि ‘अल ऊला’ एक गैरमामूली विरसा और सकाफ़्ती (सांस्कृतिक) तारीख का मुकाम है। ये एक ऐसा मुकाम है, जिसके बारे में अब तक किसी ने नहीं सुना था। अब सउदी हुकूकत ने इस शहर को सय्याहों (पर्यटकों, टूरिस्ट) के लिए खोल दिया है जिसके बाद शहर की सूरत-ए-हाल बदल गई है। इसके साथ ही इस मुकाम की तारीख (इतिहास) लोगों के सामने आ गई। 
सऊदी अरब का वो शहर जहां मुसलमानों को जाना मना है, The city in Saudi Arabia where Muslims are forbidden to go

2 हजार साल पुराना है शहर ‘अल ऊला’ 

सउदी अरब का ये शहर ‘अल ऊला’ 2 हजार साल पुराना इलाका है। अमरीकी मैगजीन के मुताबिक ‘अल ऊला’ सऊदी अरब के शुमाल मगरिबी (उत्तर-पश्चिमी) सहरा के बीच में है और इसका ज्यादातर हिस्से के बारे में अब तक लोगों को जानकारी नहीं है। अंदाजों से जाहिर होता है कि इस मुकाम की अब तक 5 फीसद से भी कम जगह की खुदाई की गई है। ‘अल ऊला’ में यूनेस्को वर्ल्ड हैरीटेज का मुकाम 'अल-हिजर' भी मौजूद है जहां सुर्ख रेत के पत्थरों की चटानों में तराशे गए बड़े-बड़े मकबरे हैं। इस कदीम (प्राचीन) शहर में नजर आने वाले मकानों के खंडहर सहरा की मिट्टी की ईंटों से बने हुए हैं जो अब सहरा में मुख़्तलिफ शक्लों में नजर आते हैं। मैगजीन ने इन्किशाफ (खुलासा) किया है कि यहां कदीम राक आर्ट (प्राचीन पाषाण कला) है। मशहूर शेफ के रेस्तोराँ हैं। उनमें से एक मशहूर रेस्तोराँ 'मराया' है, जिसे शेफ जैसन अथर्टन ने बनाया था। इस साल के सात अजीबों में से बाकी अजूबों में फ्रÞांस की ‘मोंट सेंट मशाल इमारत’ भी शामिल की गई है जिसे फन्ने तामीर (निर्माण कला) का एक अजूबा समझा जाता है।
सऊदी अरब का वो शहर जहां मुसलमानों को जाना मना है, The city in Saudi Arabia where Muslims are forbidden to go

यही हुई थी जंग-ए-तबूक 

साल 630 में जंग-ए-तबूक के दौरान बैजंतीनी सेना को एकजुट करने के लिए पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने कयादत की थी। उसके बाद 13वीं सदी में अल उला एक खास मरकज बन गया, जिसके बाद उसकी कदीम इमारतों को नया शहर बसाने के लिए दोबारा इस्तेमाल किया जाने लगा, साथ ही अल उला के पास एक नया शहर बसा दिया गया। ये कदीम शुमाल अरेबियाई सल्तनत लिहयान की दारुल हुकूमत (राजधानी) थी। 2000 साल पुराना ये शहर रेगिस्तान से घिरा हुआ है और पत्थरों का एक खंडहर सा नजर आता है। हरान शिलालेख के मुताबिक बेबिलोनिया का आखिरी राजा नाबोनिडस ने 552 कब्ल इसा (ईसा पूर्व) तायमा, देदान (पुराना लिहयान) और यतरिब (मौजूद नाम मदीना) को फतह करने के लिए एक फौजी मुहिम की कयादत आप (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने की थी। कई सौ साल बाद लिहयान ने नाबातियन की हुकूमत चलाई, जब तक कि रोम ने उसकी दारुल हुकूमत पेट्रा पर हमला नहीं कर दिया। 
    उसके बाद नाबातियन हेग्रा चला गया, जिसे अब मैदान-ए-सालेह के नाम से जाना जाता है। ये अल उला से 13 मील की मसाफत (दूरी) पर वाके (स्थित) है। अल उला सऊदी अरब के मदीना मुनव्वरा के शुमाल-मग्रिब (उत्तर पश्चिम) में है जो अपने कदीम खंण्डहरो के लिए जाना जाता है। मोअर्रिख (इतिहासकार) इसे 2000 साल से भी ज्यादा पुराना बताते हैं। 

आप (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) ने इस शहर में दाखिल होने से मना फरमाया है

‘तेल’ के अलावा दीगर हल्कों से रेवेन्यू हासिल करने के लिए सऊदी हुकूमत मुल्क को वर्ल्ड वाइड टूरिस्ट इलाके के तौर पर बदलने की कोशिश कर रहा है। अल-उला इलाके से कुछ ही दूरी पर वाके एक कदीम तहजीब (प्राचीन सभ्यता) के विरसे वाली जगह को दुनिया के लोगों के लिए खोलना भी इसी कोशिश का हिस्सा है। 

अल हिज्र

हेगरा या अल-हिज्र नामी कदीम हैरतअंगेज मुकाम अल हिज्र कदीम पहाड़ों और हैरतअंगेज खूबसूरत ताअमीराती नक्काशी से भरा है, जो सदियों से अछूता रहा है। अब यूनेस्को इसे अपनी सबसे पुरानी विरासतों में से एक मानता है। माहेरीन आसारे कदीमा (पुरातत्ववेत्ताओं) के मुताबिक पहाड़ पर उस जमाने में जैसी ताअमीर की गई है, वह आम लोगों का काम नहीं हो सकता। वैसी ताअमीर के लिए अब भारी-भरकम मशीनों का इस्तेमाल करना पड़ता है। 

अल उला को मैदान-ए-सालेह (थमूद का घर) के नाम से भी जाना जाता है

इस्लाम में, इस जगह को मैदान-ए-सालेह के नाम से भी जाना जाता है, यानी, कौम-ए-समूद (थमूद का देश)। पहाड़ों पर पैगंबर सालेह (अलैहिस्सलाम) के लोगों का घर, जो नक्काशी और बनाने में अपनी हुनरमंदी के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि यह इलाका बहुत उपजाऊ और हरा-भरा हुआ करता था, जिसमें हर साल काफी तादाद में अनाज और दीगर फसलें होती थीं। हालाँकि, इस कुदरती वसाइल (प्रचुर प्राकृतिक संपदा) ने अमीर समूद लोगों को मगरुर और जालिम बना दिया। वे गरीबों पर जुल्म करने लगे। पैगंबर सालेह अलैहिस्सलाम को तब अल्लाह ताअला की जानिब से उनकी रहनुमाई करने के लिए भेजा गया। 
    हालांकि पैगंबर सालेह अलैहिस्सलाम को कबूल करने की बजाय, उन्होंने आप अलैहिस्सलाम को अपनी पेशनगोई (भविष्यवाणी) साबित करने के लिए कोई करामात दिखाने की चुनौती दी। उन्होंने उसे पास की चट्टानों से एक ऊंट निकालने कहा। सालेह अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ की जिसके बाद उनके बीच एक ऊंटनी पैदा हुई जिसने एक बछड़े को पैदा किया। हजरत सालेह अलैहिस्सलाम ने समूद लोगों को हुक्म दिया कि वे उनकी इज्जत करें और उनकी बातें मानें। लेकिन उनमें से कुछ ने सालेह अलैहिस्सलाम की पैगम्बरी पर भरोसा किया, जबकि दीगर ने फिर भी इससे इनकार कर दिया, उनमें से दो ने बेकसूर ऊंट को मार डाला।
    अल्लाह ताअला ने इसकी सजा के तौर पर आधी रात को इलाके में जलजला लाया जिससे वे सभी मर गए और उनमें से कोई भी फिर कभी नहीं उठा। ‘तब उन पर एक ऐसी भारी मुसीबत आ पड़ी, कि वे अपने घरों में औंधे मुंह पड़े रहे।’ (सूरह अल-अराफ आयत)  जलजले के बाद जो कुछ बचा रह गया वो कदीम इमारतें और हैं जिन्हें उन्होंने पहाड़ों और चट्टानों को काटकर बनाया था, जैसा कि हम आज भी देख सकते हैं। पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अल उला (मैदान-ए-सालेह) जाने से परहेज किया
    पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ताबुक की लड़ाई के लिए जाते समय जब इस जगह से गुजरे तो उन्होंने खासकर इस जगह (अल उला या मैदान-ए-सालेह) को अपने साथियों को इबरत के तौर पर बताया। पैगंबर-ए-इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सहाबियों को सिर्फ उस कुएं से पानी पीने की इजाजत दी जिसका इस्तेमाल हजरत सालेह अलैहिस्सलाम के ऊंट किया करते थे। इसके अलावा आप सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सहाबियों को उस जगह से कुछ भी खाने-पीने मना फरमाया और वहां से जल्दी गुजरने कहा। 

ओजोन परत में देखा गया बड़ा छेद

समूद के लोगों पर अल्लाह के हुक्म से हजारों साल पहले आए बड़े भूकंप की निशानी के तौर पर यहां ओजोन परत पर बड़ा छेद देखा जा सकता है। माहेरीन ने इस बरबाद इलाके के ठीक ऊपर ओजोन परत में एक बड़ा छेद खोजा है। इसकी वजह से इस इलाके में भूकंप और यूवी शुआएं (किरणों) से होने वाले नुकसान स्किन डिसीज, कैंसर और कुदरती तूफान का खतरा हमेशा बना रहता है। मोहक्केकीन (शोधकर्ता) इस बात से इत्तेफाक राय हैं कि इंसानों के लिए यहां लंबे समय तक रहना मुनासिब नहीं है। 

इबरत की जगह है यह इलाका 

इबरत की निशानी तौर पर इस जगह को तफरीह के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मैदान-ए-सालेह अल्लाह के अजाब से खत्म हो जाने वाले लोगों का घर रहा है। इस जगह को अल्लाह ताअला की शान याद के तौर पर याद किया जाना चाहिए। 


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