सफर उल मुजफ्फर, 1447 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
जिस शख्स का मकसद आखेरात की बेहतरी हो, अल्लाह ताअला उसके दिल को गनी कर देता है, उसके बिखरे हुए कामों को समेट देता है और दुनिया ज़लील हो कर उसके पास आती हैं।
- तिर्मीज़ी शरीफ
मुतअदिद्द नाकामियों और मुफलिसी को शिकस्त देकर कामयाबी का सफर तय करने वाले रियाज की मुतास्सिरकुन रूदाद
मुश्किलों को शिकस्त देकर ख्वाब को हकीकत में बदलने की उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रियाज आलम ने बेहतरीन कामयाबी हासिल की है। गांव बांसा शरीफ, थाना मसौली के रियाज, मोहम्मद हारून के साहबजादे हैं। अपनी मेहनत और लगन से इंडियन रेलवे में सिविल इंजीनियर (अनुसंधान एवं विकास अभियंता) ओहदे पर फाईज होने पर रियाज को कसीर तादाद में लोग मुबारकबाद दे रहे हैं। ये महज इसलिए नहीं कि रियाज ने सिविल इंजीनियर की पढ़ाई की है अलबत्ता इसलिए कि ये पढ़ाई उन्होंने मुफलिसी, तंगदस्ती, परेशानी और बे यारों मददगार के मुकम्मल की है।
जददोजहद से भरा सफर

भाई, दोस्त और असातजा का साथ
रियाज की वालिदा ने अपनी जिंदगी में उनका हौसला बढ़ाया। माली परेशानी से बचने नौचंदी मेले में रियाज दुकान पर बैठा करते थे ताकि कुछ पैसे कमाए जा सकें। वालिद के इंतेकाल के बाद भाई सिराज आलम ने माली और जज्बाती तौर पर उन्हें सहारा दिया। दोस्त गोविंद केशरी और असातजा सुमीत सेंगर व बलवीर सिंह ने वक्त-फ-वक्तन उन्हें गाईड कर उनकी हिम्मत बढ़ाई। रियाज की मेहनत रेलवे भर्ती परीक्षा के तहत अनुसंधान एवं विकास अभियंता के तौर इंतेखाब के रूप में रंग लाई। वे कहते हैं, मैं खुदा का शुक्रगुजार हूं और अपने भाई सिराज, दोस्त गोविंद, और असातजा सुमीत सेंगर व बलवीर सिंह के तंई शुक्रगुजार हूं।
रियाज की कहानी हर उस नौजवान के लिए मुतास्सिरकुन है जो मुश्किल हालात में भी अपने सपनों को सच करने की हिम्मत रखता है। उनकी यह कामयाबी बांसा शरीफ गांव और थाना मसौली के लिए फख्र का सबब बनी हुई है।
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