2 अक्टूबर 1187 ईस्वी को यूरोप की मुत्तहदा फौज को दी इबरतनाक शिकस्त 88 सालों बाद बैत-उल-मुकद्दस पर दोबारा कायम हुआ मुसलमानों का कब्जा
✒ बख्तावर अदब
सुल्तान सलाह उद्दीन अय्यूबी (रहमतुल्लाह अलैह), ये वो नाम है, जो न सिर्फ इस्लाम बल्कि दुनियावी तारीख में भी सुनहरे अलफाज में दर्ज है, जो मशहूर तरीन फातेहीन व हुक्मरानों में से एक हैं और जिनके सिर किबला अव्वल को फतह करने का सेहरा है और वो, जिनकी कयादत में अय्यूबी सल्तनत पे मिस्त्र, शाम, ईराक, यमन, हज्जाज और दयार-ए-बाकर में हुकूमत की और जिनकी बहादुरी, जुरअत, हुस्न-ए-अख्लाक, सखावत और बुर्दबारी का चर्चा न सिर्फ मुसलमानों बल्कि ईसाईयों के बीच भी यकसां इज्जत से होता था। 2 अक्टूबर 1187 ईस्वी को यूरोप की मुत्तहदा फौज को इबरतनाक शिकस्त देकर बैत-उल-मुकद्दस को आजाद कराने वाले सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की पैदाईश सन् 1137 ईस्वी में मौजूदा इराक के शहर तकरीयत में पैदा हुई थी। मिस्र को फतह करने वाली नूर उद्दीन जंगी की फौज में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी एक फौजी अफसर थे। नूर उद्दीन जंगी की फौज के सिपह सालार सलाहुद्दीन अय्यूबी के चाचा थे। फतह मिस्र की जंग के दौरान सुल्तान अय्यूबी की शुजाअत को देखते हुए उन्हें 564 हिजरी में मिस्र का हाकिम मुकर्रर कर दिया गया था जिसके बाद सुल्तान अय्यूबी ने 569 हिजरी में यमन भी फतह कर लिया था। उसी बीच नूरुद्दीन जंगी इंतकाल फरमा गए। उनके इंतेकाल के बाद सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी हुक्मरानी पर फायज हुए। बैत-उल-मुकद्दस (मस्जिद-ए-अक़्सा, येरुशलम) को आजाद कराने का सपना देखने वाले सुल्तान सलाहुद्दीन ने मिस्र के बाद 1182 ईस्वी तक शाम, मोसुल, हलब वगैरह भी फतह कर अपनी सल्तनत में शामिल कर लिया था।
मदीना मुनव्वरा पर हमला करने चली फौज पर कहर बनकर टूटा सुल्तान का गुस्सा
1186 ईस्वी में ईसाइयों की एक फौज मदीना मुनव्वरा पर हमला आवर होने की गरज से रवाना हुई। सलाहुद्दीन अय्यूबी को जब इसकी खबर हुई तो वे फौरन अपने जांबाज जवानों को लेकर हतीन नामी मुकाम पर ईसाईयों की फौज तक जा पहुंचे और उनपर ऐसा कहर बरपा किया कि हतीन के मुकाम पर 4 जुलाई 1187 ईस्वी को हुई वो जंग तारीख की खौफनाक तरीन जंग में शुमार की जाती है। जंग के नतीजे में दुश्मन की फौज के 30 हजार जवान मारे गए और तकरीबन उतने ही कैदी बना लिए गए। यहां तक कि फौज का सिपह सालार भी बंदी बना लिया गया था। बाद में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने खुद अपने हाथों से उसका सर कलम कर दिया था। हतीन की यही वो जंग थी, जिसके बाद दुश्मनाने इस्लाम पर इस्लामी फौज की दहशत तारी हो गई।
88 सालों बाद दोबारा मुसलमानों के कब्जे में आया बैतुल मुकद्दस
हतीन की जंग में फतह हासिल करने के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैत-उल-मुकद्दस की तरफ रुख किया। बैतुल मुकद्दस पहुंचने पर सुल्तान सलाह उद्दीन और मसीहियों के बीच खूं-रेज जंग हुई। लेकिन एक ही हफ्ते में मसीहियों की फौज को हथियार डालने पड़ गए। वो जुमा का दिन और तारीख थी, 2 अक्टूबर 1187 जब 88 साल बाद बैतुल मुकद्Þदस न सिर्फ दोबारा मुसलमानों के कब्जे में आया बल्कि तमाम फलिस्तीन से ईसाई हुकूमत का खात्मा हो गया।
और यूं पूरा हुआ नूर उद्दीन जंगी का अरमान
बैत-उल-मुकद्दस की फतह, सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के अजीमुश्शान कारनामों में शुमार की जाती है। इस अजीमुश्शन फतह के बाद सुल्तान सलाहुद्दीन मस्जिद-ए-अक्सा में दाखिल हुए और नूरुद्दीन जंगी का तैयारकर्दा मिम्बर अपने हाथ से वहां नसब कर दिया और इस तरह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के हाथों नूरुद्दीन जंगी की ख्वाहिश मुकम्मल हुई। सुल्तान सलाहुद्दीन ने बैत-उल-मुकद्दस फतह करने के साथ ही उन सभी मजालिम पर पाबंदी लगा दी जो शहर के लोगों पर मसीही फौजियों ने आयद कर रखे थे। यही नहीं, उन्होंने फिदिया लेकर मसीहीयों को अमान दे दी और जो फिदिया अदा नहीं कर सके, उनका फिदिया सुल्तान सलाहुद्दीन के भाई मलिक आदिल ने अदा किए। सुल्तान सलाह उद्दीन की बैत-उल-मुकद्दस पर फतह के साथ येरुस्लम पर 1099 से कायम मसीही हुकूमत भी खत्म हो गई। फिलिस्तीन अब मुस्लिमों के कब्जे में आ गया और तकरीबन 761 साल तक मुसलसल मुस्लिमों के कब्जे में रहा। बाद में (1948 ईस्वी में) अमेरिका, बर्तानिया और फ्रांस की साजिश से फलस्तीन के कुछ हिस्सों पर यहूदी सल्तनत कायम हो गई। इसके साथ ही बैत-उल-मुकद्दस का तकरीबन आधा हिस्सा यहूदियों के कब्जे में चला गया। बाद में, यानि 1967 ईस्वी के करीब अरब-इजरायल जंग में बैत-उल-मुकद्दस पर इस्राईलियों ने फिर कब्जा कर लिया।
सुल्तान सलाहउद्दीन की फौज को डालने पड़े हथियार
बैत-उल-मुकद्दस पर सुल्तान सलाह उद्दीन की फतह की खबर के योरोप पहुंचते ही, चारो ओर कोहराम बरपा हो गया। हर तरफ लड़ाई की तैयारियां होने लगी। फ्रांस, जर्मनी, इटली और इंग्लैंड की फौजें बैतुल मुकद्दस की ओर रवाना हो गई। एक ओर इंग्लैंड का बादशाह रिचर्ड, जो अपनी बहादुरी की वजह से शेर दिल मशहूर था तो दूसरी ओर फ्रांस का बादशाह फिलिप अगस्टिस अपनी अपनी फौज लेकर फलस्तीन जा पहुंचे। यूरोप की इस फौज की तादाद तकरीबन 6 लाख बताई जाती है। जर्मनी का बादशाह फ्रेंडर्क बारबरोसा भी इस मुहिम में उनके साथ था। यूरोप से चले इस अजीमुश्शान लश्कर ने अक्का बंदरगाह का मुहासरा कर लिया। हालांकि तब तक सुल्तान सलाह उद्दीन ने अक्का की हिफाजत के तमाम इंतजामात कर लिए थे। यूरोप की मुत्तहदा फौज और सुल्तान सलाह उद्दीन की फौज के बीच एक और खूं-रेज जंग शुरू हुई। मसीहियों के 10 हजार जवान मारे जा चुके थे। इसके बावजूद वे डटे हुए थे।
इस्लामी मुल्कों ने नहीं दिया साथ
बड़ी तादाद में मसीही सिपाहियों के मारे जाने के बावजूद चूंकि उनकी तादाद लाखों में थी और यूरोप से उन्हें मुतवातिर कुमुक की सप्लाई हो रही थी, वो डटे रहे। दूसरी ओर सुल्तान सलाह उद्दीन की फौज को न कहीं से कुमुक पहुंच रही थी, न कोई इस्लामी मुल्क उनका साथ दे रहा था। मसीहियों की नाकेबंदी के सबब शहर के लोग भी सुल्तान की फौज को कुमुक न पहुंचा सके। आखिरकार अमान के वादे पर शहर को मसीहियों के हवाले कर देना पड़ा। इसके अलावा मुसलमानों को 2 लाख अशरफिया बतौर तावान जंग अदा करने और 500 मसीही कैदियों की वापसी का वादा करना पड़ा। इसके साथ ही मुसलमानों ने हथियार डाल दिए। जिसके बाद मुसलमानों को अपने माल-असबाब के साथ शहर से निकल जाने दिया गया।
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