रबि उल आखिर 1446 हिजरी
फरमाने रसूल ﷺ
वो नौजवान, जिसकी जवानी अल्लाह की इबादत और फरमाबरदारी में गुज़री, अल्लाह ताअला उसे कयामत के दिन अपने अर्श का ठंडा साया नसीब फरमाएगा।
- बुख़ारी शरीफ
✅ रबात : आईएनएस, इंडिया File Photo
इस फ़ैसले ने दो नज़रियात के बीच इख़तिलाफ़ छेड़ दिया है जिनमें पहला तबक़ा सिक्योरिटी वजूहात की बिना पर इस पाबंदी की ताईद (समर्थन) करता है जबकि दूसरे तबक़े ने उसे मज़हब के ख़िलाफ़ जंग और लिबास की आज़ादी सल्ब करने के मुतरादिफ़ समझा है। सोशल मीडीया पर मराक़शी हलक़ों की जानिब से मुख़्तलिफ़ ख्याल सामने आ रही हैं। बाअज़ लोगों ने उसे औरत के लिबास के इख़तियार की आज़ादी के हक़ पर हमला और मज़हबी ज़हन रखने वाली लड़कियों के ख़िलाफ़ इमतियाज़ी सुलूक गिरदाना है।
दूसरी जानिब बाअज़ लोगों के ख़्याल में ये एक सही इक़दाम है, जिसका मक़सद तलबा और असातजा के बीच राबते के अमल को आसान बनाना और तालिबात की शिनाख़्त जानने का ख़्याल रखना है। तालिबात के हक़ में मुख़्तलिफ़ ब्लॉगरों का कहना है कि ये हरकत नसल परस्ती और इमतियाज़ पर मबनी है। उन्होंने इस्तिग़ासा से मुदाख़िलत का मुतालिबा किया ताकि तालिबात को अपनी पढ़ाई जारी रखने और शरई लिबास पहनने की इजाज़त दी जाए।
ब्लॉगरों के मुताबिक़ ये फ़ैसला बिला जवाज़ है जो तालिबात के हुक़ूक़ में कोताही का अक्कास है। हर फ़र्द को आज़ादी के साथ अपनी शनाख़्त के इज़हार की इजाज़त देने की ज़रूरत है। दूसरी जानिब एक ब्लॉगर ने प्रिंसिपल के फ़ैसले की ताईद करते हुए लिखा है कि ये स्कूल की सलामती बरक़रार रखने के लिए तालीमी इदारे के दाख़िली क़ानून से मुताबिक़त रखता है। नक़ाब मराक़श की सक़ाफ़्त का हिस्सा नहीं बिलख़सूस ये पहनने वाले की शिनाख़्त को छुपा देता है।
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