जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
तुम में सबसे ज़्यादा अज़ीज़ मुझे वो शख्स है, जिसके आदात व अखलाक सबसे उमदा हो।
- बुखारी
✅ लखनऊ : आईएनएस, इंडिया
आगरा में जमुना किनारे में वाके सुलतान परवेज़ का मक़बरा, मुबारक मंज़िल और क़दीम बुर्ज अब रियास्ती महिकमा आसारे-ए-क़दीमा के ज़रीया महफ़ूज़ किए जाएंगे। गवर्नर ने इसके लिए इबतिदाई नोटीफ़िकेशन जारी किया है।यादगारों पर नोटिस चस्पा होने की तारीख़ से एक माह तक इस पर एतराज़ जाहिर किया जा सकेगा। एतराज़ात का अज़ाला करने के बाद हतमी (अंतिम) नोटीफ़िकेशन जारी किया जाएगा और यादगारों को रियास्ती महिकमा आसारे-ए-क़दीमा के तहत महफ़ूज़ विरासत क़रार दिया जाएगा। आगरा में कई ऐसी तारीख़ी इमारतें मौजूद हैं, जो आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया (एएसआई) या रियास्ती महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की हिफ़ाज़त में नहीं हैं और अदम देखभाल के सबब ख़स्ता-हाल हो चुकी हैं। एएसआई ने एक दहाई कब्ल हाथी ख़ाना, हवेली आग़ा ख़ान और हवेली ख़ान दुर्रां को महफ़ूज़ यादगारें क़रार दिया था, इनमें से हाथी ख़ाना की बहाली का काम मुकम्मल हो चुका है।
सुलतान परवेज़ मिर्ज़ा मुग़ल बादशाह जहांगीर के बेटे और शाहजहाँ के बड़े भाई थे। उनका मक़बरा जमुना किनारे चीनी का रौज़ा और एतमाद-उद-दौला के दरमयान है। उसे तैमूर के समरक़ंद में मौजूद मक़बरे के तर्ज़ पर तामीर किया गया था, जिसके चारों तरफ़ बाग़ मौजूद था। बर्तानवी दौर में,19वीं सदी में उसे नीलाम कर दिया गया था और बाग़ का वजूद मिट गया था, जबकि मक़बरा खन्डर की सूरत इख़तियार कर चुका है। इसकी दीवारें ख़स्ता-हाल हो चुकी हैं और चूने का प्लास्टर झड़ चुका है, जिससे उसके गिरने का ख़तरा है।
एएसआई ने उसके इर्द-गिर्द की कई इमारतों को महफ़ूज़ किया था, मगर इस मक़बरे की तरफ़ कोई तवज्जा नहीं दी। ताहम, रियास्ती महिकमा आसारे-ए-क़दीमा के हालिया नोटीफ़िकेशन ने इस यादगार की बहाली की उम्मीदें रोशन कर दी हैं।
0 टिप्पणियाँ