जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
बेशक अल्लाह ताअला रोज़े कयामत फरमाएगा, मेरी अज़मत व ताज़ीम की खातिर बाहमी (आपस में) मोहब्बत करने वाले कहाँ है? मैं आज उनको अपने साए में जगह दूंगा, उस दिन मेरे साए के सिवा कोई साया नहीं होगा।
- मिश्कवात, मुस्लिम
रेख़्ता फाउंडेशन ने हरीश बीना शाह फाउंडेशन के इश्तिराक से एक जादूई शाम ''शाम-ए-रेख़्ता' का ऐलान किया है जो उर्दू शायरी, मौसीक़ी और रक़्स के लाज़वाल विरसे को मनाने के लिए ख़ास होगी। ये सक़ाफ़्ती तक़रीब अगले महीने 9 नवंबर 2024 को मुंबई के जमशेद भाभा थिएटर एनसीपीए, नरीमन प्वाईंट और 16 नवंबर 2024 को हैदराबाद के पेगाह पैलेस बेगम पेट में होगी।दोनों ईवेंट उर्दू ज़बान के शायक़ीन, फ़न के दिलदादा और शायरी के परस्तारों के लिए एक मुनफ़रद तजुर्बा होगा। शाम-ए-रेख़्ता एक नाक़ाबिल-ए-फ़रामोश शाम का इज़हार है, जिसमें दो दिलकश परफार्मेंस पेश की जाएँगी, रक़्स-ए-ना तमाम' जो शायरी और रक़्स का एक सफ़र है। नूरजहां के फ़न्नी सफ़र की अक्कासी करता एक दिलकश परफार्मेंस, और रेख़्ता मुशायरा, उर्दू शायरी की एक महबूब रिवायत जिसमें मुल्क के माअरूफ़ शोअरा शिरकत करेंगे।
रेख़्ता फाउंडेशन के बानी संजीव सर्राफ़ का कहना है कि शाम-ए-रेख़्ता सिर्फ एक तक़रीब नहीं, बल्कि ये उर्दू तहज़ीब का जश्न है, एक ऐसी ज़बान जिसने अपने आपको हिन्दोस्तान की सक़ाफ़्ती विरासत में ज़म कर दिया है। मुंबई, हैदराबाद और मुंबई में शाम रेख़्ता के इस तजुर्बे को पेश करना सिर्फ उसके फ़नकाराना विरसे को ख़राज-ए-तहसीन पेश करना नहीं बल्कि एक ऐसा संगम भी बनाना है, जहां ज़बान, शायरी और पारफार्मेंस एक जगह जा कर मिल जाते हैं।
रेख़्ता अपने आग़ाज़ से लेकर अब तक इसी जज़बे और लगन के साथ इस लाज़वाल मीरास को आगे बढ़ाने के लिए पुरअज़म हैं। रेख़्ता (मुंबई) में शिरकत करने वाले शोअरा में वसीम बरेलवी, फ़र्हत एहसास, विजेंदर सिंह परवेज़, पूजा भाटिया, शमीम अब्बास, राजेश रेड्डी, मदनमोहन दानिश, असलम हसन और चिराग़ शर्मा शामिल होंगे जबकि रेख़्ता मुशायरा (हैदराबाद) में अज़म शाकिरी, सरदार सलीम, इक़बाल अश्हर, मलिकज़ादा जावेद, शार्क़ कैफ़ी, अक़ील नामानी, मुईन शादाब और गोविंद गुलशन शामिल होंगे।
मारूफ़ शायर के इंतिक़ाल पर एजूकेशनल एंड वेल्फेयर ट्रस्ट की ताज़ियती नशिस्त
बिहार के सारण, छपरा के माअरूफ़ शायर ख़ुरशीद साहिल अपने इलाक़े में माअरूफ़ शख़्सियत के हामिल थे, उन्होंने अदबी दुनिया में अपनी शिनाख़्त क़ायम कर ली थी। वो संजीदा और मक़बूल शायर थे। उनके इंतिक़ाल से बिहार ने अपनी एक अदबी शख़्सियत को खो दिया है। वो कुल हिंद सतह के मुशायरे में भी कलाम सुनाते थे और पसंद किए जाते थे। ख़ूबसूरत लब-ओ-लहजा के मालिक थे। उन्होंने छपरा, सारण में अदब की शम्मा रोशन रखी।इन ख़्यालात का इज़हार अता एजूकेशनल एंड वेल्फेयर ट्रस्ट के जनरल सेक्रेटरी मुहम्मद कौसर ने अपने ताज़ियती बयान में किए। उनके इंतिक़ाल पर मुख़्तलिफ़ हलक़ों ने ताज़ियत का इज़हार किया है। साहिल साहिब अरसा से बीमार थे और ज़ेर-ए-इलाज थे। मुहम्मद कौसर ने कहा कि हम इस मौके पर उनके अहिल-ए-ख़ाना को ताज़ियत पेश करते हैं।
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