जमादी उल ऊला 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
कोई इंसान अच्छे अमल करता है और लोग उसकी तारीफ करते है तो ये गोया मोमिन के लिए दुनिया में ही जन्नत की बशारत है।
- सहीह मुस्लिम
✅ रियाद : आईएनएस, इंडिया
अल ऊला रॉयल कमीशन का कहना है कि ममलकत के शुमाल मग़रिबी (उत्तर पश्चिम) इलाक़े में आसारे-ए-क़दीमा (पुरातत्व) की तलाश के दौरान कांसी दौर का क़दीम गांव दरयाफ़त हुआ है। रियाद में प्रेस कान्फ्रेंस से ख़िताब करते हुए दरयाफ़त होने वाले आसारे-ए-क़दीमा की अहमीयत को उजागर किया गया।
माहिरीन का कहना है कि शवाहिद (सबूतों) से मालूम हुआ है कि जज़ीरा अल अरब में अहद-ए-रफ़्ता में बड़ी तादाद में चरागाहों का रिवाज रहा था जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई होती थीं। इस गांव को 'अलंता कहा जाता था, उसकी तारीख़ के बारे में ख़्याल है कि 2 हज़ार से 2 हजार 400 कब्ल अज़ मसीह (ईसा पूर्व) या इससे भी क़दीम था। ये गांव 2.6 हकटर रक़बे पर फैला हुआ था जिसके अतराफ़ में 15 किलोमीटर तवील बाउंड्री वाल थी और यहां रहने वालों की तादाद 500 के क़रीब रही होगी।
माहिरीन आसारे-ए-क़दीमा की टीम ने गावं की तलाश के पहले मरहले का आगाज अक्तूबर 2020 में किया था, जब वहां मामूली आसार देखे गए थे जिसके बाद इलाक़े का बड़े पैमाने पर सर्वे किया गया और फरवरी 2024 में गांव की बाक़ायदा दरयाफ़त के काम का आग़ाज़ किया गया था। टीम ने गांव की मुकम्मल स्कैनिंग की जिसमें ज़ेर-ए-ज़मीन दफ़न होने वाले खन्डरात के वाजेह आसार ज़ाहिर होना शुरू हुए। दरयाफ़त होने वाले गांव का मुशाहिदा करने से मालूम होता है कि उस दौर में वहां आबाद लोग रिवायती मकानों में रहा करते थे, जो कई मंज़िला थे। अंदाज लगाया जा रहा है कि उस वक़्त के बाशिंदे ज़मीनी मंज़िल को बतौर गोदाम इस्तिमाल करते होंगे जबकि पहली और दूसरी मंज़िल रिहायश के लिए मख़सूस होगी। मकानों के दरमयान रास्ता और गलियाँ तंग और छोटी होती थीं।
गांव में क़ब्रिस्तान भी था, जो टावर की शक्ल का बनाया गया था जिनमें वो अपने मर्दों को दफ़नाते थे। कुछ क़ब्रों से उस दौर में इस्तिमाल होने वाले मिट्टी के बर्तन और धाती आलात, जिनमें कुल्हाड़ी और ख़ंजर वग़ैरा शामिल थे, मिले हैं।
डाक्टर अहमद अल हारसी को साईंस-ओ-टेक्नोलोजी में अरब ख़वातीन ऐवार्ड
रियाद : नीओम प्रोजेक्ट में टेक्नोलोजी और तहक़ीक़ के शोबे की सरबराह डाक्टर नही अहमद अल हारसी को अरबन बिज़नेस ने साल 2024 के लिए साईंस-ओ-टेक्नोलोजी के मैदान में अरब ख़वातीन ऐवार्ड से नवाजा। सबक़ न्यूज़ के मुताबिक़ ये ऐवार्ड टैक्नोलोजी और दरयाफ़त में उनके मिसाली कामों पर दिया जाता है।
डाक्टर अल हारसी का किरदार महज टेक्नोलोजी की तरक़्क़ी तक ही महदूद नहीं बल्कि वो मुख़्तलिफ़ शोबों में भी अहम और सरकरदा रोल अदा करती रही हैं। उन्होंने अपनी सलाहीयतों का इस्तिमाल करते हुए मुस्तक़बिल के तक़ाज़ों को मद्द-ए-नज़र रखते हुए मसाइल का जदीद हल भी पेश किया जो नीओम मंसूबे के लिए इंतिहाई अहम साबित होगा। वाज़िह रहे कि डाक्टर अल हारसी को इससे क़बल जर्मन ग़ाइस सेंटर फ़ार हाई परफ़ार्मेंस कंप्यूटिंग ऐवार्ड से भी नवाज़ा गया है जो मशरिक़ वुसता की सतह पर पहली मुहक़्क़िक़ के तौर पर उन्हें दिया गया। इसके अलावा साल 2022 में उन्हें टेक्नोलोजी की दुनिया में पहली ख़ातून का ऐवार्ड भी दिया गया। डाक्टर हारिसी वो पहली सऊदी ख़ातून हैं, जिन्हें ड्रोन उड़ाने का लाईसेंस जारी किया गया।
ख़्याल रहे डाक्टर अल हारसी ने शाह अबदुल्लाह साईंस एंड टेक्नोलोजी यूनीवर्सिटी से मास्टर और पीएचडी की डिग्री हासिल की हैं।
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