जमादी उल आखिर 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
पूछा गयाए या रसूल अल्लाह ﷺ क्या हमारे लिए जानवरों के साथ अच्छा सुलूक करने में भी अज्र हैए आप ﷺ ने फरमायारू हाँए हर नर्म जिगर वाले यानी हर जानदार के साथ अच्छा सुलूक करने में अज्र है।- सहीह बुख़ारी
✅ दमिशक़ : आईएनएसए इंडिया
शामी मुसल्लह (हथियारबंद) ग्रुपों ने शाम के सरकारी इदारों पर एक नया झंडा बुलंद करना शुरू कर दिया( ये झंडा साबिक़ सदर बशार अल असद की हुकूमत के सरकारी झंडे से मुख़्तलिफ़ था। मार्च 2011 में शामी बग़ावत के फूट पड़ने के बाद शामी अपोज़ीशन ने अवामी मुज़ाहिरों के दौरान आज़ादी का पर्चम बुलंद किया था।
अक्तूबर 2011 में शामी क़ौमी काउंसिल, जिसने बाज़ाबता तौर पर हिज़ब.ए.इख़्तलाफ़ की सियासी छतरी के तौर पर काम किया, ने अगले मरहले के लिए अपने नारे के तौर पर आज़ादी के पर्चम को थाम लिया। फिर मुसल्लह धड़ों ने इस पर्चम को अपनाना शुरू कर दिया। आज़ादी के पर्चम का इस्तिमाल असल में जनवरी 1932 का है, जब उसे पहली बार दमिशक़ में शामी जमहूरीया के दौर में उठाया गया था, जब मुल़्क अब तक फ़्रांसीसी मैंडियट के तहत था। इस पर्चम को आज़ादी का पर्चम का नाम दिया गया क्योंकि उसकी मौजूदगी में 17 अप्रैल 1946 को शाम की फ़्रांसीसी मैंडियट से आज़ादी मिली थी।
1950 में आईन साज़ असेंबली के ज़रीया मंज़ूर शूदा शामी आईन के आख़िरी वर्ज़न के बाब एक के आर्टीकल छः में कहा गया है कि शाम का झंडा मुंदरजा ज़ैल शक्ल में होगा। उसकी लंबाई उसकी चौड़ाई से दोगुना है। इसके तीन रंग बराबर मुतवाज़ी होंगे। सबसे ऊपर सबज़, फिर सफ़ैद फिर स्याह होगा। सफ़ैद हिस्से में पाँच कोनों वाले तीन सुर्ख़ सितारे होंगे। आज़ादी का झंडा 22 फरवरी 1958 को शाम और मिस्र के दरमयान इत्तिहाद तक सरकारी रहा। उस वक़्त मरहूम सदर जमाल अब्दुल नासिर ने मुत्तहदा अरब जमहूरीया के लिए एक नया झंडा अपनाया था। इस नए झंडे में ऊपर से तर्तीब से 3 रंग थे।
ताहम 28 सितंबर 1961 को अलैहदगी के बाद इस पर्चम का इस्तिमाल बंद हो गया था। फिर मिस्र से अलैहदगी के बाद शाम में नई हुकूमत ने सरकारी तौर पर आज़ादी के पर्चम को दुबारा इस्तिमाल किया जो सिर्फ दो साल तक जारी रहा। बाअस पार्टी ने 8 मार्च 1963 को इक़तिदार के ख़िलाफ़ बग़ावत के बाद इसी पर्चम को अपनाया जो यूईटिड रीपब्लिक का था।
आज शाम का आज़ादी का झंडा मुल्क के तक़रीबन तमाम हिस्सों में लहरा रहा है। वज़ारतों, सिफ़ारत ख़ानों और मीडीया आउटलेट्स से वाबस्ता बहुत से सोशल मीडीया प्लेटफ़ार्मज़ ने अपने पर्चम को आज़ादी के पर्चम से बदल दिया है।
मुल्के शाम के रि कंस्ट्रक्शन में 300 बिलीयन डालर खर्च होने का अंदाजा
दोहा : क़तर यूनीवर्सिटी के कॉलेज आफ़ इकनॉमिक्स के अस्सिटेंट प्रोफेसर डाक्टर जलाल कनास ने कहा है कि मौजूदा दौर में शाम की मईशत (अर्थव्यवस्था) और मुक़ामी करंसी लीरा की सूरत.ए.हाल का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। इसकी वजह मुल्क को किसी हद तक ग़ैरण्मुस्तहकम सिक्योरिटी का सामना है। आने वाली मुद्दत के दौरान क्या होगा, इस बारे में ग़ैर यक़ीनी सूरत.ए.हाल है।
मआशी सूरत.ए.हाल किसी हद तक गिर चुकी है क्योंकि जंगी दौर के आग़ाज़ से ही मआशी इदारे मुनहदिम हो चुके हैं। इससे पहले भी निज़ाम में बदउनवानी, आमदनी की ग़ैर मुसावी तक़सीम, बेरोज़गारी वग़ैरा से मुताल्लिक़ मआशी मसाइल भी थे। डाक्टर जलाल कनास ने कहा कि तमाम रियास्ती इदारों, चाहे वो माली हों या मआशी, ज़रई हों या सनअती, सब ख़ातमे पर पहुंच गए हैं। जलाल कनास ने मज़ीद कहा कि मौजूदा दौर शाम की मईशत पर एतिमाद बहाल करने और सलामती और सियासी इस्तिहकाम को बहाल करने का दौर है।
उन्होंने वाज़िह किया कि शामी पाउंड के बारे में बात करना और शाम की मईशत पर एतिमाद की बहाली सलामती और सियासी इस्तिहकाम की बहाली के बाद होनी चाहिए। शाम की ताअमीर-ए-नौ (नव निर्माण) के तख़मीने (अंदाज) के बारे में डाक्टर जलाल कनास ने कहा कि तख़मीना 200 बिलीयन से 300 बिलीयन डालर के दरमयान या इससे भी ज़्यादा हो सकता है। ताअमीर-ए-नौ के लिए दरकार मुद्दत का ताल्लुक़ सलामती की बहाली और शाम की मईशत की बहाली की मुद्दत से है। उन्होंने बुनियादी ढाँचे और मईशत के बुनियादी शोबों जैसे ज़राअत (कृषि) सनअत (उद्वोग) और मालीयाती इदारों की ताअमीर-ए-नौ के लिए बैन उल अक़वामी बिरादरी और आलमी मालीयाती इदारों के साथ एतिमाद की बहाली की एहमीयत की निशानदेही की।
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