श्री रंगा पट्टन मस्जिद के आहाते से मदरसा हटाने अदालत मुदाख़िलत करे

जमादी उल ऊला 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया : अगर कोई शख्स मुसलमानों का हाकिम बनाया गया और उसने उनके मामले में खयानत की और उसी हालत में मर गया तो अल्लाह ताअला उस पर जन्नत हराम कर देता है।
- मिश्कवत 

अदालत से मोदी सरकार की अपील

श्री रंगा पट्टन मस्जिद के आहाते से मदरसा हटाने अदालत मुदाख़िलत करे

✅ बंग्लूरू : आईएनएस, इंडिया 

मर्कज़ी हुकूमत ने कर्नाटक हाईकोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल कर श्री रंगा पट्टन जामा मस्जिद से लगे मदरसे को वहां से हटाने का मुतालबा किया है। हुकूमत का कहना है कि श्री रंगा पटना जामा मस्जिद एक तारीख़ी मुक़ाम है। मस्जिद से लगे मदरसे की सरगर्मियां उस जगह की हिफ़ाज़त और सलामती के लिए ख़तरा हैं। हुकूमत ने अपनी दरख़ास्त में दलील दी है कि मुदर्रिसा को यहां से हटाने से इस तारीख़ी मुक़ाम की हिफ़ाज़त को यक़ीनी बनाया जा सकता है। इसकी मौजूदगी महफ़ूज़ यादगारों के इर्द-गिर्द के क़वानीन की ख़िलाफ़वरज़ी करती है। 
    विरासत के तहफ़्फ़ुज़ के दावे ब मुक़ाबला मज़हबी हुक़ूक़ के मुतनाज़ा केस ने श्री रंगा पटना की जामा मस्जिद को सुर्खियों में ला दिया है। जो कर्नाटक का तारीख़ी और सक़ाफ़्ती तौर पर गहराई से बना मुक़ाम है। कनक पूरा ताल्लुक़ा के कबाली गांव के रिहायशी अभिषेक गौड़ा की तरफ़ से दायर की गई दरख़ास्त में इल्ज़ाम लगाया गया है कि मस्जिद के अहाते में मदरसे की सरगर्मियां ग़ैर मजार हैं, दरख़ास्त के मुताबिक़ महफ़ूज़ यादगार में मदरसे की मौजूदगी क़ानूनी दफ़आत के ख़िलाफ़ है। 

श्री रंगा पट्टन मस्जिद के आहाते से मदरसा हटाने अदालत मुदाख़िलत करे


    उन्होंने दरख़ास्त की है कि हुकूमत उस जगह की हिफ़ाज़त के लिए पाबंदियां आइद करे। ये मुक़द्दमा चीफ़ जस्टिस एनवी अनजारिया की सरबराही वाली डिवीज़न बेंच के सामने पेश किया गया। मर्कज़ की नुमाइंदगी करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के एडीशनल सॉलीसिटर जनरल आफ़ इंडिया के अरविंद कामथ ने दलील दी कि तारीख़ी जामा मस्जिद को सरकारी तौर पर 1951 में एक महफ़ूज़ यादगार के तौर पर नामज़द किया गया था। उन्होंने इस्तिदलाल किया कि आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया (एएसआई) और मुताल्लिक़ा क़वानीन के तहत महफ़ूज़ ढाँचे के अंदर किसी भी ग़ैर मजाज़ सरगर्मेंयों की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए। श्री रंगा पटना में वाके जामा मस्जिद सदियो पुरानी है और टीपू सुलतान जैसे हुकमरानों से वाबस्ता है, जिन्होंने उसे तामीर कराया था। उसकी तारीख़ी एहमीयत भी है,  इस पस-ए-मंज़र ने मस्जिद को एक अलामती यादगार बना दिया है, जो सय्याहों, तारीख़ दानों और अक़ीदत मंदों को यकसाँ तौर पर अपनी तरफ़ मुतवज्जा करता है। 
    महफ़ूज़ यादगार के लेबल के साथ, हालांकि, रैगूलेटरी निगरानी आती है जो उसके अहाते में कुछ सरगर्मियों को महिदूद करती है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मज़हबी सरगर्मियों में मुदाख़िलत की वजह से अमन-ओ-अमान में ख़लल पड़ने के ख़दशात हैं। मर्कज़ का ख़्याल है कि महफ़ूज़ मुक़ामात के इर्द-गिर्द क़वानीन के नफ़ाज़ को तर्जीह दी जानी चाहिए। उन्होंने इस्तिदलाल किया कि इन ग़ैर मजाज़ कामों को नज़रअंदाज करना दीगर सक़ाफ़्ती मुक़ामात के लिए एक मिसाल क़ायम कर सकता है।


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