उर्दू अपने ही शहर लखनऊ में ख़स्ता-हाल, कई उर्दू किताब घर बंद, जानें दानिश महल की कहानी

 रज्जब उल मुरज्जब, 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

कयामत के दिन मोमिन के मीज़ान में अखलाक-ए-हसना (अच्छे अखलाक) से भारी कोई चीज़ नहीं होगी, और अल्लाह ताअला बेहया और बद ज़बान से नफरत करता है।

- जमाह तिर्मिज़ी

उर्दू अपने ही शहर लखनऊ में ख़स्ता-हाल, कई उर्दू किताब घर बंद, जानें दानिश महल की कहानी

✅ लखनऊ : आईएनएस, इंडिया 

राजधानी में दानिश महल जैसे तारीख़ी किताबों की दुकानें कभी उर्दू अदब की मशहूर शख़्सियात को अपनी तरफ़ मुतवज्जा करती थीं। 1936 में क़ायम होने वाली ये बुक शाप उर्दू उदबा और अदीबों का पसंदीदा ठिकाना हुआ करती थी। जोश मलीहाबादी, मलिक ज़ादा मंज़ूर और दीगर कई नामवर अदीब यहां हाज़िर होकर ज़बान ओ अदब पर गुफ़्तगु करते थे। 
    दानिश महल के मालिक मुहम्मद नईम ने बताया कि मेरे वालिद ने ये बुक शाप क़ायम की थी। यहां अदीबों के साथ अदबी मुबाहिसे हुआ करते थे, नामवर लोग उर्दू अदब से मुताल्लिक़ किताबें ख़रीदते थे, लेकिन वक़्त के साथ-साथ हालात बदल गए हैं। उन्होंने कहा कि लखनऊ के बड़े बुक हाऊस जैसे नसीम बुक डिपो, नुसरत पब्लिशर और मकतबा दारुल अदब अब बंद हो चुके हैं। कुछ जगहों पर मोटर साईकलें फ़रोख़त हो रही हैं और कहीं चाय फ़रोख़त हो रही है। 
    मुहम्मद नईम ने कहा कि किताबों की फ़रोख़त में ज़बरदस्त कमी आई है। बच्चे यहां किताबें लेने आते हैं लेकिन उनके कोर्स के लिए किताबें दस्तयाब नहीं हैं। उर्दू अकेडमी को करोड़ों का बजट मिलने के बावजूद पहली से आठवीं जमात तक की किताबें नहीं छप रही हैं। ग्रैजूएशन और पोस्ट ग्रेजूएशन की किताबें मिलना भी मुश्किल हैं जिसकी वजह से तलबा मायूस हो कर लोटते हैं। 
    उन्होंने बताया कि उर्दू अकेडमी की तरफ़ से छपी किताबों की क़ीमत पिछले तीन सालों में दोगुनी हो गई है। 200 रुपय की किताब अब 400 रुपय में दस्तयाब है। अकेडमी का मक़सद किताबें सस्ते दामों दस्तयाब करना था, लेकिन अब ऐसा मुम्किन नहीं है। 

1, 90, 000 में सिर्फ 15 हजार किताबें उर्दू की 

    लखनऊ की अमीर अलद विला पब्लिक लाइब्रेरी, जो 1925 में कैसरबाग में क़ायम हुई, अदब से मुहब्बत करने वालों के लिए एक अहम मुक़ाम है। लाइब्रेरियन सुप्रिया शर्मा के मुताबिक़ यहां 1,90,000 किताबें हैं। जिनमें से 15000 उर्दू में हैं। यहां हर माह 200 से 300 तलबा उर्दू की किताबें पढ़ने आते हैं। जदीद टैक्नोलोजी की मदद से लाइब्रेरी ने 75,000 किताबों को डीजेटाइज़ किया है, जो लखनऊ पब्लिक लाईब्रेरी डाट काम वेबसाइट पर दस्तयाब हैं जहां डीजीटल प्लेटफ़ार्मज़ पर एक ही सर्च के ज़रीये किताबें पढ़ी जा सकती हैं।


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