जमादी उल आखिर १४४६ हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया : अगर कोई शख्स मुसलमानों का हाकिम बनाया गया और उसने उनके मामले में खयानत की और उसी हालत में मर गया तो अल्लाह ताअला उस पर जन्नत हराम कर देता है।
- मिश्कवत
संभल, जौनपुर और अजमेर का मुआमला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि मुज़फ़्फ़र नगर की एक मस्जिद को लेकर तनाज़ा शुरू हो गया है। ना सिर्फ मस्जिद बल्कि चार दुकानें भी इस तनाज़ा में शामिल हैं, जिन्हें वज़ारत-ए-दाख़िला (गृह विभाग) ने दुश्मन की जायदाद क़रार दिया है।
मुआमले में सरकारी दस्तावेज़ात से पता चलता है कि ये ज़मीन पाकिस्तान के पहले वज़ीर-ए-आज़म लियाक़त अली ख़ान के भाई सज्जाद ख़ान की है। इन ज़मीनों को वक़्फ़ जायदाद क़रार दिया गया था। मुज़फ़्फ़र नगर में मस्जिद की जायदाद के तनाज़ा के दरमयान मुक़ामी इंतेजामिया और फिर कस्टोडियन आफ़ एनिमी प्रॉपर्टी ऑफ़िस की एक टीम ने जांच की। जिसके बाद बताया गया कि मुज़फ़्फ़र नगर रेलवे स्टेशन के करीब ०.०८२ हेक्टेयर ज़मीन सज्जाद अली के नाम है।
आपको बताते चलें कि सज्जाद अली ख़ान लियाक़त अली ख़ान के भाई और रुस्तम अली के बेटे थे। मुआमले में एक गिरोह का दावा है कि ये ज़मीन वक़्फ़ की है और दूसरा गिरोह उसे नाजायज़ तजावुज़ात का नतीजा क़रार दे रहा है। मालूमात के मुताबिक़ इस ज़मीन पर सबसे पहले लियाक़त अली ख़ान के वालिद रुस्तम अली ख़ान ने १९१८ में क़बज़ा किया था। लियाक़त अली हरियाणा के शहर करनाल में पैदा हुए थे। १९३२ में लियाक़त अली मुत्तहदा सूबे की क़ानूनसाज़ काउंसिल यानी आज के उतर प्रदेश के सदर मुंतख़ब हुए और १९४० में उन्हें मर्कज़ी असेंबली में तरक़्क़ी दी गई। लियाक़त अली के ख़ानदान का इलाक़े में काफ़ी असर-ओ-रसूख़ था और मुज़फ़्फ़र नगर में उनकी काफ़ी जायदाद भी थी, उनमें से एक जायदाद के हवाले से झगड़ा शुरू हुआ लेकिन १९४७ के बाद सब कुछ बदल गया क्योंकि लियाक़त अली पाकिस्तान चले गए।
लियाक़त के पाकिस्तान जाने के बाद उनकी हिन्दुस्तानी जायदादें दुश्मन की जायदाद में तबदील हो गईं। हकूमत-ए-हिन्द के क़ानून के तहत, ये ओहदा उन अफ़राद की जायदाद पर लागू होता है जो तक़सीम के बाद मुल्क छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे। उनके जाने के बाद उनके ख़ानदान की जायदाद भी तनाज़ा की ज़द में आ गई। ज़मीन का तनाज़ा उस वक़्त बढ़ गया, जब मुज़फ़्फ़र नगर रेलवे स्टेशन के बिलकुल सामने वाके इस ज़मीन पर मस्जिद तामीर की गई। राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन नामी ग्रुप के कन्वीनर संजय अरोड़ा ने २०२३ में तामीर की तरफ़ तवज्जा मबज़ूल कराते हुए इल्ज़ाम लगाया कि मस्जिद और दुकानें दुश्मन की जायदाद पर गै़रक़ानूनी तौर पर तामीर की गई हैं।
संजय अरोड़ा ने केस में दलील दी कि मस्जिद एक होटल की तरह तामीर की गई है, उसने इलाक़े में तामीर के लिए क़ानूनी ज़ाबतों की तामील नहीं की, क्योंकि उसे मुज़फ़्फ़र नगर डेवलपमेंट अथार्टी (एमडीए) से मंज़ूर होना ज़रूरी नहीं था। उन्होंने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड के पास इस जायदाद का कोई दस्तावेज़ नहीं है। जब कोई शख़्स पाकिस्तान मुंतक़िल होता है तो उसकी ज़मीन या तो गै़रक़ानूनी जायदाद दुश्मन की जायदाद तसव्वुर की जाती है।
सरकारी अहलकार संजय अरोड़ा ने कहा कि ये जायदाद और उसके इर्द-गिर्द वाके मस्जिद क़ौमी सलामती के लिए ख़तरा है। उन्होंने इस सिलसिले में ज़िला इंतिज़ामीया से शिकायत भी दर्ज कराई है। इसके बाद मुक़ामी हुक्काम की जानिब से तहक़ीक़ात की गईं। जिसमें डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ऑफ़िस, रीवैन्यू डिपार्टमैंट और म्यूनसिंपल कारपोरेशन के नुमाइंदे थे।
उसके बाद तफ़तीश आगे बढ़ी। जब उसे दिल्ली में एनिमी प्रॉपर्टी ऑफ़िस के हवाले किया गया, और टीमों को ज़मीन का सर्वे करने के लिए कहा गया।
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