भोपाल के सक़ाफ़्ती विरसे को बचाने मुत्तहिद हुए तमाम मज़ाहिब के दानिश्वरान, इक़बाल मैदान से पाबंदी हटाने का किया मुतालिबा

जमादी उल ऊला 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

नबी करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया : अगर कोई शख्स मुसलमानों का हाकिम बनाया गया और उसने उनके मामले में खयानत की और उसी हालत में मर गया तो अल्लाह ताअला उस पर जन्नत हराम कर देता है।
- मिश्कवत 
भोपाल के सक़ाफ़्ती विरसे को बचाने मुत्तहिद हुए तमाम मज़ाहिब के दानिश्वरान, इक़बाल मैदान से पाबंदी हटाने का किया मुतालिबा

✅ नई तहरीक : भोपाल 

मुल्क के सबसे पुरअमन और ख़ूबसूरत दार-उल-हकूमत भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है। नवाब दोस्त मुहम्मद ख़ान से मंसूब भोपाल की रोशन तारीख यहां के बाशिंदों के लिए बाइस-ए-फ़ख़र है।
    अदब और शायरी के इस शहर भोपाल के लोगों ने मुशायरा, क़व्वाली और दीगर अदब और मौसीक़ी के मैदान में अपनी बेहतरीन कारकर्दगी से अपनी सलाहीयतों का लोहा मनवाया है। इनमें सरे फेहरिस्त शयर-ए-मशरिक़ डाक्टर अल्लामा मुहम्मद इक़बाल हैं, यही वजह है कि भोपाल को दार उल इकबाल भी कहा जाता है। उनके अलावा कैफ़ भोपाल, शेअरी भोपाली, सईद ख़ां , मंज़र भोपाली वग़ैरा का नाम नुमायां तौर पर लिया जाता है।
  
भोपाल के सक़ाफ़्ती विरसे को बचाने मुत्तहिद हुए तमाम मज़ाहिब के दानिश्वरान, इक़बाल मैदान से पाबंदी हटाने का किया मुतालिबा
  शहर भोपाल तारीख़ी इमारतों का शहर है। ताज अल मसाजिद, सदर मंज़िल, गोल घर, शाहजहाँ आबाद गेट ओर जामा मस्जिद-ओ-मोती मस्जिद जैसी मुतअदिदद तारीखी इमारतें शहरे भोपाल की तारीख को रोशन बनाती हैं। हर एक का अपना शानदार माज़ी है। लेकिन आज ये तमाम तारीख़ी इमारतें ख़स्ता-हाली का शिकार हैं। नीज़, इक़बाल मैदान जैसी जगह पर पाबंदी आइद कर दी गई है जहां से बिला तफ़रीक़ कभी मज़हब-ओ-मिल्लत प्रोग्राम की आवाज़ें गूंजा करती थी।
    अल्लामा इक़बाल की शख़्सियत से भला कौन वाक़िफ़ नहीं होगा, ये वही अल्लामा इक़बाल हैं, जिनका लिखा क़ौमी तराना इतना मक़बूल हुआ कि कोई दूसरा उस मुक़ाम तक नहीं पहुंच सका, इकबाल ने भगवान राम पर जो नज़म लिखी, जिसमें उन्हें इमाम हिंद कहा गया, उसकी भी कोई नज़ीर नहीं मिलती लेकिन आज अल्लामा इकबाल भी तास्सुब का शिकार हो कर रह गए हैं। उनके नाम से मौसूब मैदान पर पाबंदी लगा दी गई है।
    इसी के मद्द-ए-नज़र ''विरासत भोपाल मंच' के ज़ेर-ए-एहतिमाम कमला पार्क में वाके दुर्रानी हाल में एक ख़ुसूसी इजलास का इनइक़ाद किया गया जिसमें मुमताज़ शहरी रहनुमा, समाजी कारकुन, तारीख़ दां , सक़ाफ़्ती शख़्सियात, पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन से जुड़े लोग और मुख़्तलिफ़ समाजी और सियासी हज़रात ने शिरकत की। इत्तिहाद की मिसाल क़ायम करने वाले इस प्रोग्राम ने भोपाल की गंगा जमुनी तहज़ीब , साझी विरासत और आपसी भाई चारगी को एक-बार फिर उजागर किया।
    प्रोग्राम से ख़िताब करते हुए साबिक़ डीजीपी एमडब्लयू अंसारी ने मुनाकिदा इजलास को कई माअनों में अहम बताते हुए कहा कि ना सिर्फ इक़बाल मैदान बल्कि भोपाल के कई तारीख़ी मुक़ामात हैं, जिनकी देखरेख़ करने वाला कोई नहीं है। या तो वो तजावुज़ात का शिकार हो कर हुकूमत के कब्जे में चले गए हैं या फिर ख़स्ता-हाली में यूँही वीरान पड़े हैं और अपनी ख़स्ता-हाली पर रो रहे हैं।
    अपने तारीख़ी असासे को बचाने की असद ज़रूरत बताते हुए उन्होंने हर शहरी को इसकी हिफ़ाज़त के लिए जिम्मेदारी की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, कुछ इमारतों को वक़्त की तबाहकारियों से नुक़्सान पहुंचा है और कुछ के सिर्फ नाम और आसार बाक़ी रह गए हैं। जबकि ये हमारे सक़ाफ़्ती विरसे हैं। मौजूदा हुकूमतें इन आसारे क़दीमा को मिटाना चाहती हैं, उनकी तारीख़ को मसख़ करना चाहती हैं। सड़कों और शहरों के नाम तब्दील किए जा रहे हैं। नफ़रत की सियासत कर सियासी फ़ायदा उठाने की कोशिशें की जा रही हैं। इन्साफ़ के नज़रिया से देखा जाए तो ये तमाम चीज़ें मह इमारत नहीं बल्कि हमारे बुज़ुर्गों की विरासत है जिसे बचाने की ज़िम्मेदारी हम सब पर आइद है।
    गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में कई शहरों, जगहों और सड़कों का नाम तबदील किया गया है। इलाहाबाद प्रयागराज हो गया, हबीबगंज रेलवे स्टेशन रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया। इसी तरह होशंगाबाद का नाम भी तब्दील कर दिया गया। इस्लाम नगर जगदीश पूर तो ईदगाह हिल्स गुरूनानक टेकरी हो गया। इसके अलावा कई मिसालें मौजूद हैं जहां हुकूमत ने कोई नया तरक्कीयाती काम करने के बजाय महज नामों की तबदीलीयां की हैं।
    इन हालात में ये इजलास यक़ीनन एहमीयत का हामिल है। इसमें इक़बाल मैदान की मौजूदा सूरत-ए-हाल, उसकी तारीख़ी एहमीयत और सक़ाफ़्ती किरदार पर तफ़सीली तबादला-ए-ख़्याल भी किया गया। इस दौरान एडवोकेट सय्यद साजिद अली ने समाजी और सक़ाफ़्ती तक़रीबात पर पाबंदियां हटाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने तजवीज़ पेश कि इंतिज़ामीया तरजीही बुनियादों पर इक़बाल मैदान की देख-भाल और ख़ूबसूरती को यक़ीनी बनाए ताकि ये जगह दुबारा शहर की सक़ाफ़्ती और समाजी तक़रीबात का मर्कज़ बन सके।
    इजलास ने भोपाल के शहरियों के दरमयान गंगा जमुनी तहज़ीब की एक बेहतरीन मिसाल पेश की। इस इक़दाम से भोपाल ही नहीं, मध्य प्रदेश और पूरे भारत में मौजूद क़ीमती सरमाए के तईं बेदारी पैदा हुई है। दर्जनों मसाजिद वीरान पड़ी हुई हैं। जहां भी क़दीम मसाजिद, मक़बरा और मज़ार वीरान कर दिए गए हैं, कोई देख-भाल करने वाला और आवाज़ उठाने वाला नहीं है, उनके लिए भी अब आवाज़ उठने लगी हैं। अपने विरसे को लेकर लोगों में बेदारी आ रही है।
    प्रोग्राम के इत्तिहाद से ना सिर्फ इक़बाल मैदान के तहफ़्फ़ुज़ के मुतालिबे को तक़वियत मिली बल्कि शहर के विरसे के तहफ़्फ़ुज़ के बारे में भी बेदारी पैदा हुई। जिसमें इक़बाल मैदान के साथ-साथ गौहर महल, ताज-महल, शौकत महल, मोती महल और कई ऐसी मसाजिद हैं, जहां से तहरीक-ए-आज़ादी में फ़तवे दिए गए जिसकी बदौलत आज़ादी नसीब हुई, लेकिन अब वो ख़स्ता-हाली का शिकार हैं। अब तवक़्क़ो यही है कि मुक़ामी इंतिज़ामीया और शहरी इन तारीख़ी असासों की हिफाजत की जानिब कोई पेशरफ्त करेंगे। भोपाल की सक़ाफ़्त और विरसे को बचाने की इस कोशिश ने एक-बार फिर साबित कर दिया कि ये शहर सिर्फ़ इमारतों का शहर नहीं बल्कि उसकी एक तारीख़ है। भोपाल की विरासत यानी साझी विरासत गंगा जमुनी तहज़ीब आपसदारी और भाईचारगी को बचाने की सख़्त जरूरत है।
    इस अहम इजलास में तमाम ने मुत्तहिद होकर एक ज़बान में हुकूमत से मुतालिबा किया गया कि इन क़दीम तारीख़ी असासों को बचाया जाए। गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाया जाए। भाई चारा बढ़ाया जाए और तारीख़ी जगहों का नाम बदल कर नफ़रत की सियासत करने के बजाय भोपाल की बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी को सेंटर्ल यूनीवर्सिटी बनाया जाए। नीज़, ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के नाम पर भी भोपाल में उर्दू,अरबी, फ़ारसी यूनीवर्सिटी बनाई जाए और ऐसे काम किए जाएं जिससे समाज का भला हो, हर शहरी तालीम याफ़ता बने, बेरोज़गारों को रोज़गार मिले।
    इजलास में गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश करते हुए बिला तफ़रीक़ मज़हब-ओ-मिल्लत तमाम मज़ाहिब के मुंतख़ब अफ़राद ने शिरकत की जिनमें एडवोकेट साजिद अली, नवाब शादाब अली बहादुर, साबिक़ डीजीपी एमडब्लयू अंसारी, सरदार रणवीर सिंह वज़ीर, सूफ़ियान अली, अली अब्बास उम्मीद, शैलेंद्र शैली, शुऐब शाद, मुहसिन अली ख़ान, दिनेश जैन, शायर इक़बाल मसऊद, सर्वत ज़ैदी, राज कुमार वर्मा, प्रोश्तमि गुप्ता, आर्कीटेक्ट मुहम्मद हुसैन, सीनीयर लीडर दीप चंद यादव, मुहम्मद ज़हीर, समाजी कारकुन मुनव्वर अली ख़ान, इनाम हुसैन नवेद, अभिषेक वर्मा और दीगर हज़रात शामिल थे। 

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