जामा मस्जिद संभल और अजमेर दरगाह के बाद अब नजर ढाई दिन के झोपड़े पर, मंदिर होने का दावा

जमादी उल ऊला 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

जब तुम अपने घर वालों के पास जाओ तो उन्हें सलाम करो, इससे तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर बरकतें नाजिल होंगी। 

- तिरमिजी शरीफ

जामा मस्जिद संभल और अजमेर दरगाह के बाद अब नजर ढाई दिन के झोपड़े पर, मंदिर होने का दावा

0 दम तोड़ रही उर्दू को सरे नौ जिंदा करने 0 उम्मते मुसलमां का जायजा लेने और दीनी व मजहबी मुआमले को लेकर अपनी सोच व फिक्र का जवाब तलाशने के लिए …… ‘ बख्तावर अदब’और ‘नई तहरीक’ से जुड़े रहें …. Join Us

✅ अजमेर : आईएनएस, इंडिया 

मुल्क की क़दीम तरीन मसाजिद में से एक,  मस्जिद ढाई दिन का झोंपड़ा के नाम पर भी तनाज़ा शुरू हो गया है। इस बार ये तनाज़ा (विवाद) नमाज़ को लेकर है। हिंदू और जैन मजहबी रहनुमा पिछले कुछ दिनों से यहां नमाज़ पढ़ने की मुख़ालिफ़त का इज़हार कर रहे हैं। इसकी वजह मस्जिद के स्ट्रक्चर में हिन्दुस्तानी अलामतों के पाए जाने को  बताया जा रहा है। इसकी बुनियाद पर ढाई दिन के झोपड़े को हिंदू और जैन मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। 

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    इन अलामतों को सतूनों और बैरूनी दीवारों पर वाजे तौर पर देखा जा सकता है। असल में ये उन मस्जिदों में से एक है, जो शुमाली हिंद में सबसे पहले तामीर हुई थीं। तब संग तराश और कारीगर हिन्दुस्तानी होते थे, जो पेड़ और पत्तियाँ जैसे ख़ालिस हिन्दुस्तानी अलामतें बनाते थे, बाद के दिनों में ईरानी कारीगर आए जिन्होंने ताज-महल, मक़बरा हुमायूँ, दिल्ली की जामा मस्जिद की तामीर की थी। 

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    ख़ालिस हिन्दुस्तानी अलामतों को बुनियाद बनाकर मस्जिद ढाई दिन का झोंपड़ा को हिंदू मंदिर क़रार दिया जा रहा है। फिलहाल यहां नमाज़ जारी है। अगरचे ये एएसआई के मातहत भी है। दरअसल साल के शुरू में, जब एक जैन भिक्षू ढाई दिन का झोपड़ा देखने जा रहे थे, एक ख़ास बिरादरी के लोगों ने उन्हें रोक दिया था। हालांकि ये एक सयाहती (टूरिस्ट) मुकाम है, इसिलए किसी को वहां जाने से रोके जाने को गलत बताते हुए तनाज़ा बढ़ गया था। 

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    इस जगह की देख-भाल की ज़िम्मेदारी हिन्दोस्तान के महिकमा आसारे-ए-क़दीमा की है। उस वाक़िया के बाद अजमेर समेत मुल्क भर में जैन बिरादरी ने इंतिज़ामीया के पास एतराज़ दर्ज कराया था। 

    मस्जिद ढाई दिन का झोंपड़ा क़ुतुब उद्दीन ऐबक ने अफ़्ग़ान कमांडर शहाब उद्दीन मुहम्मद ग़ौरी के कहने पर 1192 ईसवी में बनवाया था। अब दावा किया जा रहा है कि इस जगह पर संस्कृत का एक बहुत बड़ा स्कूल और मंदिर था, जिसे गिरा कर मस्जिद में तबदील किया गया है। मस्जिद के मर्कज़ी दरवाज़े के बाएं जानिब संगमरमर का एक नविश्ता (शिलालेख) भी है, जिस पर संस्कृत में उस स्कूल का ज़िक्र किया गया है। 

    मस्जिद में कुल 70 सतून हैं। दावा किया जा रहा है कि ये उन मंदिरों के हैं, जिन्हें गिरा दिया गया था, लेकिन इन सतूनों को जूं का तूं रहने दिया गया। सतूनों की ऊंचाई तक़रीबन 25 फुट है और हर सतून पर ख़ूबसूरत नक़्श-ओ-निगार किया गया है। ये भी कहा जाता है कि जब मुहम्मद ग़ौरी,  पृथ्वी राज चौहान को शिकस्त देकर अजमेर से गुज़र रहा था, उसने हिंदूओं के बहुत अच्छे मज़हबी मुक़ामात को वास्तु के नुक़्ता-ए-नज़र से देखा और अपने कमांडर क़ुतुब उद्दीन ऐबक को हुक्म दिया कि वो सबसे ख़ूबसूरत जगह पर एक मस्जिद तामीर कराए। ग़ौरी ने इसके लिए 60 घंटे यानी ढाई दिन का वक़्त दिया। उस दौरान उसे हिरात के मुअम्मार अबूबकर ने डिज़ाइन किया था। जिस पर हिंदू कारकुनों ने बग़ैर रुके 60 घंटे मुसलसल काम किया और मस्जिद को तैयार किया। हालाँकि ये महज कहानी है। तारीख़ी रवायात के मुताबिक़ यहां एक मेला लगता था जो ढाई दिन चलता था, उसी बुनियाद पर इलाक़े को ढाई दिन का झोंपड़ा कहा जाता था।

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