शाही जामा मस्जिद के करीब की तीन खस्ताहाल दुकानें ढहा दी गई

 रज्जब उल मुरज्जब, 1446 हिजरी 


फरमाने रसूल ﷺ

लोगों को अपने शर से महफूज़ कर दो, उन्हें तकलीफ ना पहुंचाओ के ये भी एक सदका है, जिसे आप खुद अपने आप पर करोगे।

-सहीह बुखारी

शाही जामा मस्जिद के करीब की तीन खस्ताहाल दुकानें ढहा दी गई
file photo

संभल : आईएनएस, इंडिया 

जामा मस्जिद की तीन ख़स्ताहाल दुकानों को ढहा दिया गया है। गुजिश्ता दिनों बलदिया (नगर निगम) का बुलडोज़र मौके पर पड़ा मलबा हटाने पहुंचा था लेकिन जामा मस्जिद के सरबराह ने बुलडोज़र को रोक कर एसडीएम से मलबा ख़ुद हटाने की बात की जिसके बाद बुलडोजर वापस चला गया। 
    शहर के मुहल्ला कोट पूर्वी में वाके शाही जामा मस्जिद के क़रीब तीन ख़स्ता-हाल दुकानों को एक हफ़्ता क़बल जामा मस्जिद कमेटी ने एसडीएम के ज़बानी हुक्म पर खुद ही मिस्मार कर दिया था ताकि दुकानों के गिरने से कोई हादिसा पेश ना आए। दुकान मुनहदिम होने के बाद उसका मलबा मौके पर पड़ा था जिसे मंगल को बुलडोज़र की मदद से हटा कर सफ़ाई का काम किया जा रहा था कि जामा मस्जिद कमेटी के सदर ज़फ़र अली एडवोकेट ने मौक़ा पर पहुंच कर म्यूनसिंपल काउंसिल के बुलडोज़र से मलबा हटाने का काम रोक दिया। 
    उन्होंने एसडीएम से फ़ोन पर बात की। सदर ने कहा कि एसडीएम की ज़बानी हिदायत पर ख़स्ता-हाल दुकानों को मुनहदिम किया गया है। दुकान जामा मस्जिद के क़रीब थी। मुआहिदे के मुताबिक़ हम दुकानों के मालिक हैं और ये मलबा भी हमारा है। हमने ये काम रोक दिया है। ईओ मनी भूषण तिवारी ने कहा कि मलबा हटाने के लिए कहा गया था ताकि जगह को साफ़ किया जा सके। 
    दूसरी जानिब राम पूर में क़ब्रिस्तान के सामने पीडब्ल्यूडी की जमीन पर गै़रक़ानूनी तौर पर बनी 23 मुस्तक़िल दुकानों को बुलडोज़र से मिस्मार कर दिया गया। दुकानदारों ने अपनी दुकानें गिराने के ख़िलाफ़ एहतिजाज किया लेकिन आफ़िसरान ने कार्रवाई जारी रखी। आधे घंटे तक जारी रहने वाले इस ऑप्रेशन के दौरान इंतिज़ामीया ने तमाम दुकानें मिस्मार कर दी।

शाही जामा मस्जिद के करीब की तीन खस्ताहाल दुकानें ढहा दी गई


जस्टिस शेखर मुसलमानों के मुताल्लिक़ अपने बयान पर कायम

नई दिल्ली : इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने मुस्लमानों के बारे में दिए गए बयान पर सुप्रीमकोर्ट में अपना जवाब दाख़िल किया है जिसमें उन्होंने वाजेह तौर पर कहा कि वो अपने बयान पर क़ायम हैं। उनके बयान से अदालती ज़ाबता अख़लाक़ (न्यायायिक आचरण संहिता) की कोई ख़िलाफ़वरज़ी नहीं हुई है। 
    वीएचपी के प्रोग्राम में मुस्लमानों के बारे में दिए गए बयान की वजह से जस्टिस शेखर को चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना की कयादत वाली कालेजियम के सामने पेश होना पड़ा। एक माह बाद अब उन्होंने ख़त लिख कर जवाब दिया है जिसमें उन्होंने लिखा है कि वो अपनी तक़रीर पर पूरी तरह क़ायम हैं। उनका बयान अदालती तर्ज़-ए-अमल के किसी उसूल की ख़िलाफ़वरज़ी नहीं करता। उन्होंने दावा किया कि उनकी तक़रीर को कुछ ख़ुद-ग़रज़ लोगों ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। अदलिया के वो अरकान, जो अवामी सतह पर अपने ख़्यालात का इज़हार नहीं कर सकते उसे अदालती बिरादरी के सीनीयर्ज की जानिब से तहफ़्फ़ुज़ फ़राहम किया जाना चाहिए। 
    खबर के मुताबिक जस्टिस शेखर ने ख़त में लिखा है कि उनकी तक़रीर आईन में दर्ज इक़दार के मुताबिक़ समाजी मसले पर ख़्यालात का इज़हार है। उसका मक़सद किसी ख़ास कम्यूनिटी के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाना नहीं था। उन्होंने अपने तबसरों पर माज़रत नहीं की और कहा कि वो अपनी बात पर क़ायम हैं। 
    आपको बताते चलें कि वाक़िया 8 दिसंबर का है जब जस्टिस शेखर यादव को विश्व हिंदू परिषद के एक प्रोग्राम में मदऊ किया गया था जहां उन्होंने अपने ख़्यालात पेश करते हुए मुस्लमानों पर तबसरा किया था। यकसाँ सिविल कोड पर उन्होंने कहा कि उसे हिंदू बनाम मुस्लिम के तौर पर पेश किया गया। उन्होंने कहा था, हिंदूओं ने बहुत सी इस्लाहात (सुधार) की हैं जबकि मुस्लमानों ने नहीं कीं। उन्होंने कहा कि मैं ये कहना चाहता हूँ कि चाहे ये आपका पर्सनल ला हो, हमारा हिंदू क़ानून हो या आपका क़ुरआन, हमने अपने तर्ज़-ए-अमल में बुराईयों को दूर किया है। लेकिन आप (मुस्लमान) उन्हें ख़त्म क्यों नहीं करते। जस्टिस शेखर ने मज़ीद कहा कि मुझे ये कहने में कोई हर्ज नहीं कि हिन्दोस्तान अक्सरीयत के मुताबिक़ चलेगा। इस दौरान उन्होंने ये भी कहा कि बुनियाद परस्त मुल्क के लिए ख़तरनाक हैं। उनके इस बयान पर काफ़ी तनाज़ा हुआ जिसके बाद इस पर सियासत भी देखने में आई।


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