भारत की सरज़मीन पर कुछ ऐसी शख्सियतें भी है, जो इमारतों के साथ-साथ दिलों को जोड़ने का काम कर रही है। ज़ख़्मों पर मरहम रखने के अलावा नफ़रतों के मुक़ाबले मोहब्बत के दरख़्त लगाती है। इन्हीं में एक नाम है, सर गंगा राम जिनकी आज 10 जुलाई को यौम-ए-वफ़ात है।
उनकी ज़िंदगी का हर लम्हा उस मिशन का तरजुमान था, जो आज हम सबकी सबसे बड़ी ज़रूरत है। "इंसान को इंसान से जोड़ना, मज़हब व फ़िर्क़े की दीवारों को गिरा कर मोहब्बत की छत तले सबको जगह देना" यही उनकी ज़िंदगी का मक़सद था। 1851 में पैदा होने वाले सर गंगा राम एक माहिर इंजीनियर ज़रूर थे, मगर उनकी असल इंजीनियरिंग दिलों के दरमियान मोहब्बत का पुल बांधने की थी।
सर गंगा राम ने कभी नहीं पूछा कि मरीज़ हिंदू है या मुसलमान, मुहताज सिख है या ईसाई। उनका ईमान सिर्फ़ एक था "इंसानियत"। उनका क़ायम गंगा राम अस्पताल आज भी उसी नज़रीये पर क़ायम है: "मरीज़ मज़हब नहीं देखता, सिर्फ़ मरहम देखता है।"
आज जब नफ़रत के सौदागर तारीख़ को मसख कर हमें बांटना चाहते हैं, हमें सर गंगा राम जैसे किरदारों की तरफ़ लौटना होगा। वो ख़ामोशी से बता गए कि असल ताक़त इंसानों को जोड़ने में है। उनकी शख़्सियत ने इस बात को ज़िंदा मिसाल बना दिया कि भारत सिर्फ़ एक मुल्क नहीं, एक तहज़ीब है, जहां सब के लिए जगह है, सब के लिए इज़्ज़त है।
क्या हम और आप आज ऐसी माहौल में नहीं जी रहे हैं, जहां मज़हब, ज़ात और लिबास की बुनियाद पर नफ़रत फैलाई जा रही है? सर गंगा राम हमें याद दिलाते हैं कि ख़िदमत, मोहब्बत और भाईचारा, यही असल ताक़तें हैं। उनका नाम तारीख़ के उस सफ़्हे पर लिखा गया है जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता, क्योंकि उन्होंने पत्थर नहीं दिल तराशे हैं।
वाज़ेह रहे कि पड़ोसी मुल्क के कई शहर उनके बसाए हुए हैं। लाहौर उनका बसाया हुआ है। जब हम बात करते हैं, सर गंगा राम की तो हमें याद रखना चाहिए कि इसी तरह के काम भारत में भी कई अहम शख़्सियात ने किए हैं, तारीख़ में जिनका तज़किरा मौजूद है। जिनमें हकीम अब्दुल हमीद, हकीम अजमल, डॉक्टर मुख़्तार अंसारी, अब्दुल मजीद ख़्वाजा, शिव नाडर, अज़ीम प्रेमजी, रतन टाटा वग़ैरह सर-ए-फ़ेहरिस्त हैं। इस मौक़े पर हम इन तमाम लोगों को ख़िराज-ए-तहसीन पेश करते हैं।
10 जुलाई सिर्फ़ उनकी वफ़ात का दिन नहीं, एक मिशन की ताजगी का दिन है। आइए, हम भी सर गंगा राम के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए नफ़रत के ख़िलाफ़ मोहब्बत की बात करें, मज़हब के नाम पर दीवारों की जगह पुल बनाएं, सियासत की नफ़रतों के जवाब में इंसानियत की शम्अ जलाएं, क्योंकि यही वो रास्ता है, जिससे हम भारत को एक ख़ुशहाल और तरक़्क़ी याफ़्ता मुल्क बना सकते हैं।
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