रबि उल अव्वल, 1447 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
आलाह ताअला फरमाता है,:ऐ इंसान! मेरी इबादत के लिये फारिग हो जा, मैं तेरे दिल को मालदारी (कनाअत) से भर दूंगा, तेरी मोहताजी खत्म कर दूंगा, और अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं ऐसे कामों में मसरूफ कर दूंगा जो तेरे मुकद्दर में नहीं और तेरी मोहताजी खत्म नही करुँगा।*
- सुनन इब्न माजह
(जश्ने ईद मिलादुन्नबी के 1500वें साल 5 सितंबर पर खुसूसी मजमून
पैगम्बरे इस्लाम ﷺ का आखिरी खुतबा , जिसे खुतबातुल विदा या आखिरी पैगाम भी कहते हैं, मजहबे इस्लाम के लिए खासा अहम है। यह इस्लाम के पूरे होने का ऐलान करता है और मुसलमानों को कुरआन व सुन्नत पर अमल करने और आपसी भाईचारे व इंसाफ के उसूल चलने की हिदायत देता है।इस खुत्बे में कई अहम बातें हैं। इसमें पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने इंसानियत के लिए जो हिदायतें बताई हैं, उन्हें दुनिया का पहला इंसानी हुकूक का एलानिया (मानवाधिकार का घोषणा पत्र ) भी माना जाता है। पैगम्बरे इस्लाम ﷺ ने अपना यह आखिरी खुत्बा बरोजे जुमा, 9 ज़िलहिज्जा, 10 हिजरी बमुताबिक 6 मार्च 632 ईस्वी को मक्का के पास अराफात पहाड़ी की उराना घाटी में दिया था। यह खुतबा हुज्जतुल विदा के दौरान दिया गया था, जिसमें उन्होंने अपने उम्मतियों को इस्लाम की बुनियादी बाते और जिंदगी के नजरियात के बारे में रहनुमाई की है।
अपने खुत्बे में उन्होंने कहा- "ऐ लोगो! मेरी बात ध्यान से सुनो। हो सकता है इस साल के बाद मैं इस जगह तुमसे न मिल सकूँ। तुम्हारा ख़ून, तुम्हारा माल और तुम्हारी इज़्ज़त, इस दिन, इस महीने और इस शहर की तरह महफ़ूज़ हैं। सुन लो! क्या मैंने तुम्हें पहुँचा दिया?" (सहाबा ने कहा: जी हाँ, या रसूल अल्लाह ﷺ ।
आप ﷺ ने फ़रमाया: "ऐ अल्लाह! तू गवाह रहना। जाहिलियत का सारा सूद हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया गया। सबसे पहले मैं अपने चाचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद माफ़ करता हूँ। औरतों के बारे में अल्लाह से डरो। तुम्हारा उन पर हक़ हैं और उनका तुम पर। सुन लो! तमाम मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं। न किसी अरब को गैर-अरब पर कोई फ़ज़ीलत है, न ग़ैर-अरब को अरब पर; न गोरे को काले पर, न काले को गोरे पर फ़ज़ीलत सिर्फ़ तक़वा से है।
मैं तुम्हारे दरमियान दो चीज़ें छोड़कर जा रहा हूँ, अगर तुम उन्हें मजबूती से थाम लोगे तो कभी गुमराह न होगे। एक अल्लाह की किताब और दूसरा उसके नबी की सुन्नत। सुन लो! क्या मैंने तुम्हें पहुँचा दिया?" सहाबा ने कहा: "जी हाँ।" आप ﷺ ने आसमान की तरफ़ उंगली उठाई और तीन बार फ़रमाया: "ऐ अल्लाह! गवाह रहना।" यह वही ख़ुत्बा है जिसे इस्लामी दुनिया का पहला इंसानी हक़ूक़ (मानवाधिकार) का चार्टर कहा जाता है।
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