शाही ईदगाह मुआमले में मुस्लिम फ़रीक़ की दरख़ास्त पर फ़ैसला महफ़ूज़

रबि उल आखिर 1446 हिजरी 

 फरमाने रसूल ﷺ 

वो नौजवान, जिसकी जवानी अल्लाह की इबादत और फरमाबरदारी में गुज़री, अल्लाह ताअला उसे कयामत के दिन अपने अर्श का ठंडा साया नसीब फरमाएगा।

- बुख़ारी शरीफ 

 शाही ईदगाह मुआमले में मुस्लिम फ़रीक़ की दरख़ास्त पर फ़ैसला महफ़ूज़, bakhtawar adab, nai tahreek

✅ इलाहाबाद : आईएनएस, इंडिया 
    अदालत ने मथुरा शाही ईदगाह, कृष्ण जन्मभूमि मुआमले में तमाम दीवानी मुक़द्दमात को एक साथ सुनने के हाईकोर्ट के हुक्म को वापस लेने की दरख़ास्त पर अपना फ़ैसला महफ़ूज़ कर लिया है। मुस्लिम फ़रीक़ की तरफ़ से दायर इस दरख़ास्त पर बुध को समाअत मुकम्मल हुई। मुस्लिम फ़रीक़ ने कहा कि मांगी गई रीलीफ़ मुख़्तलिफ़ और ग़ैर मुसावी (असमान) हैं। इसलिए उन्हें एक साथ सुनना ग़लत है। 

    अदालत ने श्री कृष्णा अराज़ी (जमीन) और ईदगाह तनाज़ा में दायर तमाम 18 सिविल सूट को एक साथ सुनने का हुक्म दिया था। उसके बाद मुस्लिम फ़रीक़ ने तमाम सिविल मुक़द्दमात को एक साथ सुनने का हुक्म वापस लेने की दरख़ास्त की थी। बुध को तसनीम अहमदी ने वीडियो कान्फ्रेसिंग के ज़रीये मुस्लिम फ़रीक़ (पक्ष) की जानिब से वापसी की दरख़ास्त पर बहस की। उन्होंने कहा कि जितने भी मुक़द्दमे दायर किए गए हैं, उनकी गुज़ारशात मुख़्तलिफ़ हैं। इसलिए उन्हें एक साथ नहीं सुना जाना चाहिए। तमाम मुक़द्दमात को यकजा करने का हुक्म फ़ाइंदेमंद नहीं है, क्योंकि तमाम फ़रीक़ैन से रजामंदी नहीं ली गई है। उन्होंने अदालत से इस्तिदा (अनुरोध) की कि तमाम मुक़द्दमात को एक साथ सुनने का हुक्म वापस लिया जाए। 

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    हिंदू फ़रीक़ की जानिब से एडवोकेट ने दलील दी कि मुक़न्निना (विधायिका) ने अदालत को ये इख़तियार दिया है कि वो दो या दो से ज़्यादा मुक़द्दमों को यकजा करके सुने। इसी इख़तियार के तहत अदालत ने इन मुक़द्दमात को एक साथ सुनने का फ़ैसला किया। उस वक़्त मुस्लिम फ़रीक़ ने अपने एतराज़ पर बहस नहीं की, बल्कि केस की इफ़ादीयत (उपयोगता) पर ज़ोर दिया। इससे साबित होता है कि मुद्दआलैह की ख़ामोश मंज़ूरी थी। अब मुक़द्दमे के इस मरहले पर मुस्लिम फ़रीक़ का एतराज़ दुरुस्त नहीं है। अदालत ने फ़रीक़ैन के दलायल सुनने के बाद फ़ैसला महफ़ूज़ कर लिया। 

    वाजेह रहे कि मामले में सभी 18 मुक़द्दमों को यकजा कर समाअत की जा रही है। एक अगस्त को जस्टिस जैन ने हिंदू इबादत गुजार के सूट की बरक़रारी को चैलेंज करने वाली मुस्लिम फ़रीक़ की अर्ज़ी को मुस्तर्द (रद्द) कर दिया था और कहा था कि तमाम मुक़द्दमात यकजा करने के काबिल हैं। अदालत ने ये मज़ीद कहा कि ये सूट लिमिटेशन एक्ट, वक़्फ़ एक्ट और इबादत-गाहों के एक्ट 1991 के ज़रीया ममनू नहीं हैं, जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी मज़हबी ढाँचे की तबदीली को रोकता है। ये मुक़द्दमा हिंदू फ़रीक़ की जानिब से शाही ईदगाह मस्जिद को हटा कर अपने क़बज़े के लिए दायर किया गया है।

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