रज्जब उल मुरज्जब, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
लोगों को अपने शर से महफूज़ कर दो, उन्हें तकलीफ ना पहुंचाओ के ये भी एक सदका है, जिसे आप खुद अपने आप पर करोगे।
- सहीह बुखारी
यूपी में मंदिर-मस्जिद तनाज़ा (विवाद) शबाब पर है। हालिया दिनों में संभल, बागपत, बदायूं, फ़िरोज़ आबाद और बरेली में मस्जिदों के मंदिर होने का दावा किया गया है। इस फेहरिस्त में अब अलीगढ़ का नाम भी जुड़ गया है। यहां की तारीख़ी अपर कोट की जामा मस्जिद के मंदिर होने का दावा किया गया है।
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आरटीआई कारकुन का कहना है कि पहले इस जगह पर शिव मंदिर था। पीर को उसने सिविल जज की अदालत में दरख़ास्त दायर की है जो क़बूल कर ली गई है। केस की समाअत 15 फरवरी को होनी है। आरटीआई कारकुन और एंटी करप्शन आर्मी लीडर पण्डित केशव देव गौतम का दावा है कि पहले अपर कोट इलाक़े में हिंदू राजाओं का एक बड़ा क़िला हुआ करता था। क़िले की जगह जाली दस्तावेज़ात की बुनियाद पर जामा मस्जिद क़ायम की गई। उन्होंने महिकमा आसारे-ए-क़दीमा और बलदिया से आरटीआई के ज़रीये मालूमात हासिल कीं है जिसमें ये ज़िक्र है कि उस जगह पर पहले बौद्ध स्तूप, जैन मंदिर या शिव मंदिर था।
पण्डित केशव देव ने आरटीआई के ज़रीये म्यूनसिंपल कार्पोरेशन से पूछा था कि जामा मस्जिद किसकी ज़मीन पर बनी है, कब बनी और मस्जिद पर किसका मालिकाना हक़ है। इसके जवाब में म्यूनसिंपल कार्पोरेशन ने बताया कि मस्जिद सरकारी ज़मीन पर बनाई गई है और उसकी तामीर के हवाले से कोई रिकार्ड दस्तयाब नहीं है। कार्पोरेशन ने ये भी वाजेह किया कि मस्जिद किसी शख़्स की मिल्कियत नहीं है। आरटीआई से मिली इस जानकारी को बुनियाद बना कर पण्डित केशव देव ने सिविल जज की अदालत में मुक़द्दमा दायर किया है।
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दरख़ास्त में उन्होंने मस्जिद को हटाने और शिव मंदिर को बहाल करने का मुतालिबा किया है। दीगर मुक़ामात की तरह यहां की अदालत ने भी दरख़ास्त को क़बूल कर लिया है। मुआमले की समाअत 15 फरवरी 2025 मुक़र्रर की गई है। ये तनाज़ा ऐसे वक़्त में सामने आया है, जब यूपी के दीगर जिलों में भी ऐसे ही मुआमलों की तादाद बढ़ रही है।
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इससे पहले संभल की जामा मस्जिद के हरी हर मंदिर की बाक़ियात (अवशेष) पर तामीर होने का दावा किया गया था। यहां अदालत के हुक्म पर सर्वे भी कराया गया। इसी तरह बदायूं और बागपत में भी क़दीम मसाजिद की जगह मंदिर होने का दावा किया गया है। दूसरी जानिब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निचली अदालतों को हुक्म दिया है कि वो वाजेह इजाज़त के बग़ैर मंदिर-मस्जिद तनाज़आत में कोई भी सर्वे आर्डर पास ना करें। सुप्रीमकोर्ट ने सबसे पहले इबादत-गाहों के एक्ट 1991 से मुताल्लिक़ दरख़ास्तों को निमटाने पर ज़ोर दिया है, ताकि उन तनाज़आत से मुताल्लिक़ सूरत-ए-हाल वाजेह हो सके।
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