जिल हज्ज, 1446 हिजरी
﷽
फरमाने रसूल ﷺ
कोई इंसान अच्छे अमल करता है और लोग उसकी तारीफ करते है तो ये गोया मोमिन के लिए दुनिया में ही जन्नत की बशारत है।
- सहीह मुस्लिम
0 भोपाल की नवाबी रूह को फ़रामोश कर बैठे अहले भोपाल 0
✅ एमडब्ल्यू अंसारी : भोपाल
तारीख-ए-हिंद में सल़्तनत-ए-भोपाल एक मुनफ़र्द बाब रखती है, जिसकी सबसे दरख़शां सतर सुलतान जहां बेगम हैं। आप ना सिर्फ भोपाल की हुक्मरां रहीं रहें बल्कि बर्रें-ए-सग़ीर की उन चंद मुमताज़ ख़वातीन में शामिल हैं, जिन्होंने तालीम, सेहत और ख़वातीन के हुक़ूक़ जैसे शोबों में इन्क़िलाबी काम किए। आपका ताअल्लुक़ उस शानदार सिलसिले से था, जिसे भोपाल की बेगमात के नाम से जाना जाता है। ऐसी ख़वातीन हुक्मरां जिन्होंने मर्दों के मुआशरे में अपनी बसीरत और कयादत से एक रोशन तारीख़ रक़म की।
सुलतान जहां बेगम के दौर का भोपाल एक तरक़्क़ी याफताह रियासत था। हर तरफ़ इल्म-ओ-तहज़ीब की रोशनी फैली हुई थी। स्कूल, अस्पताल, लाइब्रेरियां, औरतों के लिए ख़ुसूसी तालीमगाहें और साफ़ सुथरी सड़कें उनकी दूर अंदेशी का अमली सबूत थीं। आज जब हम भोपाल की तरफ़ देखते हैं तो हमें ख़स्ता-हाल इमारतें, वीरान मैदान, और माज़ी की वो यादगारें दिखाई देती हैं, जिन पर वक़्त की गर्द जम चुकी है। इक़बाल मैदान, सदर मंज़िल, ताज-महल भोपाल, क़ब्रिस्तान, हाकी ग्राऊंड, बाब अली और ताज अल मसाजिद के आस-पास का इलाका सब कुछ गोया चीख़-चीख़ कर हमारी ग़फ़लत का मातम कर रहा है। बड़े तालाब के किनारे बसी यादें हो या क़दीम मसाजिद की बोसीदा दीवारें, हर मुक़ाम हम से सवाल कर है : क्या हम भोपाल की रूह को फ़रामोश कर बैठे हैं।
आज भोपाल में जहां एक तरफ़ महंगे होटल, शॉपिंग माल्ज और कमर्शियल बिल्डिंग्स बन रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ सुलतान जहां बेगम की क़ायम करदा अवामी सहूलयात दम तोड़ रही हैं। इक़बाल मैदान, जो कभी नौजवानों की हिम्मत और सेहत का निशान था, अब वीरान दर-ओ-दीवार का मंज़र पेश करता है। ताज-महल भोपाल, जो कभी सक़ाफती तक़रीबात और इल्मी महफ़िलों का मर्कज़ रहा, अब सन्नाटे और बेतवज्जुही की चादर ओढ़े खड़ा है। ये महज कोई जगह नहीं, एक तर्ज़-ए-फ़िक्र की अलामत थीं। जो आज हमें ख़ुद से सवाल करने पर मजबूर करती हैं।
इस सबके बावजूद हम फ़ख़र से कह सकते हैं कि अहल-ए-भोपाल और बिलख़सूस अलीग बिरादरी ने सुलतान जहां बेगम की तालीमी ख़िदमात को महज तारीख़ का वर्क़ नहीं समझा, बल्कि उनके छोड़े मिशन को अमली तौर पर आगे बढ़ाया है। याद रखिए, वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी की पहली ख़ातून चांसलर थीं, जिन्होंने ना सिर्फ ख़ुद इल्म हासिल किया बल्कि दूसरों के लिए भी राहें हमवार कीं। ख़ुश आइंद बात ये है कि आज उनकी तालीम को लेकर जो फ़िक्र थी, उसका तसलसुल नज़र आता है। अलीग बिरादरी निहायत अर्क़रेज़ि के साथ तालीम के मैदान और खासतौर पर ख़वातीन की तालीम और तहक़ीक़ के मैदान में नुमायां कारनामे सरअंजाम दे रहे हैं।
ख़वातीन की तालीम के लिए जो बुनियाद सुलतान जहां बेगम ने रखी, आज उसी पर नई इमारतें तामीर हो रही हैं। मुख़्तलिफ़ इदारे, अंजुमनें और सोसाइटीज़, जिनमें अलीगढ़ ओल्ड ब्वॉयज़ एसोसीएशन भी पेश पेश है, ना सिर्फ तालीमी सेमीनार, वर्कशॉप्स और स्कालरशिप प्रोग्राम मुनाक़िद कर रहे हैं, बल्कि महरूम तबक़ात के लिए तालीमी राहें आसान बनाने में मसरूफ़-ए-अमल हैं। ये सब कुछ बेगम साहिबा के ख़ाबों को ताबीर देने की ज़िंदा मिसाल है।
गौरतलब है कि शाही औक़ाफ़ भी अब एक नई तवानाई के साथ अपने तारीख़ी किरदार को निभाने की कोशिश कर रहा है। वो ना सिर्फ क़ब्रिस्तानों और मज़हबी मुक़ामात की देख-भाल कर रहे हैं बल्कि मुस्तहिक़ तलबा को वज़ाइफ़ देकर उनकी तालीमी राहों को हमवार करने में भी अहम किरदार अदा कर रहे हैं। ये वो मुसबत तबदीली है जो हमारी समाजी बेदारी और विरसे से वफ़ादारी का मज़हर है।
हमें इस अमर का एहसास है कि चैलेंजेस अब भी मौजूद हैं। जदीद तालीमी इदारों की कमी, लड़कियों के लिए महफ़ूज़ माहौल की ज़रूरत, और तालीमी बजट में इज़ाफ़ा जैसे मुआमलात अब भी तवज्जा तलब अवामिर हैं। मगर ख़ुशी की बात ये है कि हम मायूसी के बजाय उम्मीद का रास्ता चुन चुके हैं।
हमें ये समझना होगा कि तालीम सिर्फ़ डिग्री का नाम नहीं बल्कि एक ऐसा शऊर है, जो क़ौमों की तक़दीर बदल सकता है। सुलतान जहां बेगम ने हमें यही सबक़ दिया कि अगर औरत तालीम याफ़ता हो तो वो नसलों को सँवार सकती है। आज भी हमें इसी विज़न को अपनाने की ज़रूरत है। तालीम, बिलख़सूस ख़वातीन की तालीम को मुआशरती तरक़्क़ी का मर्कज़ बनाना होगा। उसके लिए सिर्फ हुकूमत नहीं, बल्कि हर फ़र्द, हर इदारा और हर बिरादरी को अपना किरदार अदा करना होगा। ख़वातीन की तालीम को अपनी अव्वलीन तर्जीह बनाएँ ताकि कल का भोपाल एक बार फिर इलम-ओ-तहज़ीब का रोशन मीनार बन सके, जैसे सुलतान जहां बेगम के अह्द में था।
लिहाज़ा आईए, हम सब मिलकर ख़ास कर अलीग बिरादरी, औकाफ-ए-शाही के तमाम कारकुनान ये अह्द करें कि हम ना सिर्फ अपनी तारीख़ी विरासत को सम्भालेंगे बल्कि उस विज़न को भी ज़िंदा रखेंगे जो हमें रोशनी की तरफ़ ले जाता है। यही सुलतान जहां बेगम को सच्ची खिराज-ए-अक़ीदत होगी।
हम नवाब सुलतान जहां बेगम को अहले भोपाल की जानिब से ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करते हुए अह्द करते हैं कि एक ऐसा भोपाल तामीर करने में अपनी सलाहीयत सर्फ़ करेंगे जो इल्म, तहज़ीब, और मुसावात का इस्तिआरा बने।
- आईपीएस (रिटा. डीजीपी)
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